ख़त्म हुआ ईंटों के जोड़ों का तनाव प्लास्टर पर उभर आई हल्की-सी मुस्कान दौड़ी-दौड़ी चीटियाँ ले आईं अपना अन्न-जल फूटने लगे अंकुर...
चीज़ों के गिरने के नियम होते हैं। मनुष्यों के गिरने के कोई नियम नहीं होते। लेकिन चीज़ें कुछ भी तय नहीं कर सकतीं अपने गिरने के बारे में...
आघात से काँपती हैं चीज़ें अनाघात से उससे ज़्यादा आघात की आशंका से काँपते हुए पाया ख़ुद को।...
शब्द तो आए बहुत बाद में संख्याएँ हमारे साथ जन्म से ही हैं गर्भ में जब निर्माण हो रहा था हमारी हड्डियों का...
सर्दियों की सुबह, उठ कर देखता हूँ धूप गोया शहर के सारे घरों को जोड़ देती है ग़ौर से देखें अगरचे...
सुबह उठ कर देखा तो आकाश लाल, पीले, सिंदूरी और गेरूए रंगों से रंग गया था मजा आ गया, 'आकाश हिंदू हो गया है' पड़ोसी ने चिल्लाकर कहा...
भूख से आँते सिकुड़ कर हो गईं छोटी दिमाग़ आ गया नज़दीक बिल्कुल पेट के रोशनियों ने लौटना शुरू किया अपने स्रोतों की और ...
तनिक देर और आसपास रहें चुप रहें, उदास रहें, जाने फिर कैसी हो जाए यह शाम। एक-एक कर पीले पत्तों का...
तैरता हुआ चांद मछलियों के जाल में नहीं फँसता जब सारा पानी जमकर हो जाता है बर्फ़ वह चुपके से बाहर खिसक लेता है...
भयानक होती है रात जब कुत्ते रोते हैं लेकिन उससे भी भयानक होती है रात जब कुत्ते हँसते हैं...
थोडी सी आक्सीजन और थोडी सी नमी वह छीन लेटी है हवा से और पेंट की परत के नीचे छिप कर एक खुफिया कार्यवाई की शुरुआत करती है ...
बह रहे पसीने में जो पानी है वह सूख जाएगा लेकिन उसमें कुछ नमक भी है जो बच रहेगा टपक रहे ख़ून में जो पानी है वह सूख जाएगा...
कुछ बच्चे बहुत अच्छे होते हैं वे गेंद और ग़ुब्बारे नहीं मांगते मिठाई नहीं मांगते ज़िद नहीं करते और मचलते तो हैं ही नहीं...
तूफ़ान आया था कुछ पेड़ों के पत्ते टूट गए हैं कुछ की डालें और कुछ तो जड़ से ही उखड़ गए हैं...
उनमें आदमियों का नहीं एक जंगल का बचपन है जंगल जो हरियाली से काट दिए गए हैं और अब सिर्फ़...
सूर्य का दुश्मन नहीं हूँ किन्तु फिर भी देखना है पश्चिमी आकाश पर टकटकी बांधे सूर्यमुखी...
रोशनी का नाम लेते ही याद आता है सूरज याद आती हैं बिजली की बत्तियाँ और टार्चें लेकिन अंधे तहख़ानों...
चट्टानों के आसपास फूल उन्हें खिलना सिखाते रहे चट्टानें डरती रहीं उन्हें दिखता रहा फूलों का मुर्झाना।...
ओ गिट्टी-लदे ट्रक पर सोए हुए आदमी तुम नींद में हो या बेहोशी में गिट्टी-लदा ट्रक और तलवों पर पिघलता हुआ कोलतार ऎसे में क्या नींद आती है?...
चट्टानें उड़ रही हैं बारूद के धुओं और धमाकों के साथ चट्टानों के कानों में भी उड़ती-उड़ती पड़ी तो थी अपने उड़ाए जाने की बात...
जैसे चिड़ियों की उड़ान में शामिल होते हैं पेड़ क्या कविताएँ होंगी मुसीबत में हमारे साथ? जैसे युद्ध में काम आए...
आपस में सट कर फूटी कलियाँ एक दूसरे के खिलने के लिये जगह छोड़ देती हैं जगह छोड़ देती हैं गिट्टियां आपस में चाहे जितना सटें ...
रह-रह कर आज साँझ मन टूटे- काँचों पर गिरी हुई किरणों-सा बिछला है तनिक देर को छत पर हो आओ चाँद तुम्हारे घर के पिछवारे निकला है ।...
ऊर्जा से भरे लेकिन अक्ल से लाचार, अपने भुवन भास्कर इंच भर भी हिल नहीं पाते कि सुलगा दें किसी का सर्द चूल्हा...
बांसुरी के इतिहास में उन कीड़ों का कोई जिक्र नहीं जिन्होंने भूख मिटाने के लिए बांसों में छेद कर दिए थे....
कितनी सुन्दर होती हैं पत्तियाँ नीम की ये कोई कविता क्या बताएगी जो उन्हें मीठे दूध में बदल देती है उस बकरी से पूछो...
इतिहास के बहुत से भ्रमों में से एक यह भी है कि महमूद ग़ज़नवी लौट गया था लौटा नहीं था वह...
किसी कवि की तरह तेज़ था वह अपराधी जिसने एक झूमते हुए वृक्ष को देखा और कहा देखो देखो एक मेज़ झूम रही है...
कितना कोयला होगा मेरी देह में कितनी कैलोरी कितने वाट कितने जूल कितनी अश्वशक्ति (मैं इसे मनुष्यशक्ति कहूंगा)...
फूले फूल बबूल कौन सुख, अनफूले कचनार । वही शाम पीले पत्तों की गुमसुम और उदास वही रोज़ का मन का कुछ-...
दिन भर की अलसाई बाहों का मौन, बाहों में भर-भर कर तोड़ेगा कौन, बेला जब भली लगेगी। आज चली पुरवा, कल डूबेंगे ताल,...
बचपन के चेहरों और किताबों की तरफ़ लौटते हुए वे सबसे पहले मिलती हैं सियारों के रोने की आवाज़ों के बीच एक शुभ संकेत की तरह हमारी तरफ़ आती हुईं...
लाल रोशनी न होने का अंधेरा नीली रोशनी न होने के अंधेरे से अलग होता है इसी तरह अंधेरा ...
खेलता हुआ बच्चा जाने कब गिरा छटपटाया और डूब गया देखते रहे सब पर्वत के पीछे धीरे-धीरे डूबता हुआ सूरज...