संख्याएँ
शब्द तो आए बहुत बाद में संख्याएँ हमारे साथ जन्म से ही हैं गर्भ में जब निर्माण हो रहा था हमारी हड्डियों का रक्तकणों और कोशिकाओं का साथ-साथ संख्याएँ भी निर्मित होती जा रही थीं एक हमारी देह की इकाई की वो संख्या है जिसमें समाहित हैं सारी संख्याएँ दो आँखों में स्थित है दो तीन है उँगलियों के तीन जड़ों में हृदय के हिस्से हैं चार और पाँच का निवास पाँच उँगलियों में है आगे की सारी सँख्याओं को देह में तलाशना बहुत मज़ेदार खेल है नौ को तो अमर कर गए कबीर कि नौ द्वारे का पिंजरा ता में पंछी पौन... मुझे तो बहुत चकित करती है यह बात कि देह की सँख्याएँ आठ की सँख्या निर्धारित करती हैं क्योंकि आठ तरह से ही मुड़ती है यह देह इसीलिए तो कृष्ण कहलाते हैं अष्टावक्र सात रंग दीखते हैं आँखों को और जीभ छह तरह के स्वादों को पहचानती है इसीलिए तो भोजन को कहा गया षट्‍रस देखिए एक से बना कैसा प्यारा शब्द एका एक जो दूसरे के बिना रह नहीं सकता जिसके बिना सम्भव नहीं थी इस दुनिया की शुरुआत मैंने तो शुरु में ही कही थी यह बात कि सँख्याएँ शब्दों की पूर्वज हैं शब्द तो आए बहुत बाद में और आते ही चले जा रहे हैं जबकी सँख्याएँ सबकी सब आ चुकी हैं क्या कोई नई सँख्या बता सकते हैं आप ।

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