रह-रह कर आज साँझ मन टूटे
रह-रह कर आज साँझ मन टूटे- काँचों पर गिरी हुई किरणों-सा बिछला है तनिक देर को छत पर हो आओ चाँद तुम्हारे घर के पिछवारे निकला है । प्रश्नों के अन्तहीन घेरों में बँध कर भी चुप-चुप ही रह लेना सारे आकाश के अँधेरों को अपनी ही पलकों पर सह लेना आओ, उस मौन को दिशा दे दें जो अपने होठों पर अलग-अलग पिघला है । अनजाने किसी गीत की लय पर हाथ से मुंडेरों को थपकाना मुख टिका हथेली पर अनायास डूब रही पलकों का झपकाना सारा का सारा चुक जाएगा अनदेखा करने का ऋण जितना पिछला है । तनिक देर को छत पर हो आओ चाँद तुम्हारे घर के पिछवारे निकला है ।

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