सूर्य
ऊर्जा से भरे लेकिन अक्ल से लाचार, अपने भुवन भास्कर इंच भर भी हिल नहीं पाते कि सुलगा दें किसी का सर्द चूल्हा ठेल उढ़का हुआ दरवाज़ा चाय भर की ऊष्मा औ रोशनी भर दें किसी बीमार की अन्धी कुठरिया में सुना सम्पाती उड़ा था इसी जगमग ज्योति को छूने झुलस कर देह जिसकी गिरी धरती पर धुआँ बन पंख जिसके उड़ गए आकाश में अपरिमित इस ऊर्जा के स्रोत कोई देवता हो अगर सचमुच सूर्य तुम तो क्रूर क्यों हो इस कदर तुम्हारी यह अलौकिक विकलांगता भयभीत करती है ।

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