Naresh Saxena
नरेश सक्सेना
( 1939 )

ख़त्म हुआ ईंटों के जोड़ों का तनाव प्लास्टर पर उभर आई हल्की-सी मुस्कान दौड़ी-दौड़ी चीटियाँ ले आईं अपना अन्न-जल फूटने लगे अंकुर...

आघात से काँपती हैं चीज़ें अनाघात से उससे ज़्यादा आघात की आशंका से काँपते हुए पाया ख़ुद को।...

तैरता हुआ चांद मछलियों के जाल में नहीं फँसता जब सारा पानी जमकर हो जाता है बर्फ़ वह चुपके से बाहर खिसक लेता है...

बहते हुए पानी ने पत्थरों पर निशान छोड़े हैं अजीब बात है पत्थरों ने पानी पर...

भयानक होती है रात जब कुत्ते रोते हैं लेकिन उससे भी भयानक होती है रात जब कुत्ते हँसते हैं...

सर्दियों की सुबह, उठ कर देखता हूँ धूप गोया शहर के सारे घरों को जोड़ देती है ग़ौर से देखें अगरचे...

धुंए के साथ ऊपर उठूँगा मैं, बच्चो जिसे तुम पढ़ते हो कार्बन दाई आक्साइड, वही बन कर छा जाऊंगा मैं, पेड़ कहीं होंगे तो और हरे हो जायेंगे,...

कुछ लोग पाँवों से नहीं दिमाग़ से चलते हैं ये लोग जूते तलाशते हैं...

बिजलियों को अपनी चमक दिखाने की इतनी जल्दी मचती थी कि अपनी आवाज़ें पीछे छोड़ आती थीं आवाज़ें आती थीं पीछा करतीं...

तनिक देर और आसपास रहें चुप रहें, उदास रहें, जाने फिर कैसी हो जाए यह शाम। एक-एक कर पीले पत्तों का...