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कभी कभी सोचा करता हूँ, मैं ये मन ही मन में, क्यों फूलों की कमी हो गयी आखिर नंदन वन में? हरे भरे धन धान्य पूर्ण खेतों की ये धरती थी, सुंदरता में इन्द्रसभा इसका पानी भरती थी...

जब से सँभाला होश मेरी काव्य चेतना ने मेरी कल्पना में आती-जाती रही चाँदनी। आधी-आधी रात मेरी आँख से चुरा के नींद खेत खलिहान में बुलाती रही चाँदनी।...

ये रोज कोई पूछता है मेरे कान में हिंदोस्ताँ कहाँ है अब हिंदोस्तान में । इन बादलों की आँख में पानी नहीं रहा तन बेचती है भूख एक मुट्ठी धान में ।...

दौलत के आगे पीछे जब मेहनत नहीं होती बरकत जिसे कहते हैं वो बरक़त नहीं होती शाहो ने सर झुकाये फ़क़ीरों के सामने किरदार से बढ़ कर कोई ताक़त नहीं होती...

नाम पर मज़हब के ठेकेदारियाँ इतनी कि बस। सेक्युलर खेमे में हैं सरदारियाँ इतनी कि बस। पीठ के पीछे छुपाए हैं कटोरा भीख का और होठों से बयाँ खुद्दारियाँ इतनी कि बस।...

उनको भी है जीने का अधिकार उन्हें भी जीने दो देना या मत देना अपना प्यार उन्हें भी जीने दो ‌। पुत्र रत्न की अभिलाषा का करने कष्ट-निवारण सब प्रसन्न थे जिस दिन माँ ने गर्भ किया था धारण...

ये प्रमाणों की सचाई है निरी शेखी नहीं है कि तुमने हिंद की नारी अभी देखी नहीं है चलो माना कि नारी फूल-सी सुकुमार होती है पयोधर है, सलिल है, अश्रु है, रसधार होती है ।...

काँटे तो काँटे होते हैं उनके चुभने का क्या रोना । मुझको तो अखरा करता है फूलों का काँटों-सा होना । युग-युग तक उनकी मिट्टी से फूलों की ख़ुशबू आती है जिनका जीवन ध्येय रहा है कांटे चुनना कलियाँ बोना । ...

नज़र जहाँ तक भी जा सकी है सिवा अँधेरे के कुछ नहीं है । तुम्हारी घड़ियाँ ग़लत हैं शायद, बजर सुबह का बजाने वालो ! मैं उस जगह की तलाश में हूँ जहाँ न पंडित ना मौलवी हों मुझे गरज क्या हो दैरो-ओ काबा या मयकदा पथ बताने वालो !...

ना तीर न तलवार से मरती है सचाई जितना दबाओ उतना उभरती है सचाई ऊँची उड़ान भर भी ले कुछ देर को फ़रेब आख़िर में उसके पंख कतरती है सचाई ...

अभी समय है सुधार कर लो ये आनाकानी नहीं चलेगी सही की नक़ली मुहर लगाकर ग़लत कहानी नहीं चलेगी घमण्डी वक़्तों के बादशाहों बदलते मौसम की नब्ज़ देखो महज़ तुम्हारे इशारों पे अब हवा सुहानी नहीं चलेगी...

एक मेरा दोस्त मुझसे फ़ासला रखने लगा रुतबा पाकर कोई रिश्ता क्यों भला रखने लगा जब से पतवारों ने मेरी नाव को धोखा दिया मैं भँवर में तैरने का हौसला रखने लगा...

चाहे जो हो धर्म तुम्हारा चाहे जो वादी हो । नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो ।‍‍‌ जिसके अन्न और पानी का इस काया पर ऋण है जिस समीर का अतिथि बना यह आवारा जीवन है...

अगर बहारें पतझड़ जैसा रूप बना उपवन में आएँ माली तुम्हीं फैसला कर दो, हम किसको दोषी ठहराएँ ? वातावरण आज उपवन का अजब घुटन से भरा हुआ है कलियाँ हैं भयभीत फूल से, फूल शूल से डरा हुआ है...

भक्त मात्रभूमि के थे भूमिका स्वतंत्रता की नाम के भगत सिंह काम आग-पानी के । बहरे विधायकों के कान में धमाका किया उग्र अग्रदूत बने क्राँति की कहानी के ।...

स्वर्ग से पतित सुर-सरिता को शीश धर भाल पे बिठा लिया मयंक ये प्रमाण है । लोकहित में समस्त जगती का विष पिया खल-बल को तृ्तीय नेत्र विद्यमान है ।...

ये रोज़ कोई पूछता है मेरे कान में हिन्दोस्तान है कहाँ हिन्दोस्तान में इन बादलों की आँख में पानी नहीं रहा तन बेचती है भूख एक मुट्ठी धान में...

कुछ सिखाती हैं हमें पेड़ों की हिलती पत्तियाँ प्यार से आपस में मिलने को मचलती पत्तियाँ आदमी की क्या है चाहत यह बताता है बसन्त जितनी झर जाती हैं उतनी ही निकलतीं पत्तियाँ...

इन ढालों के दुर्गम पथ पर देखे रोज़ फिसलते लोग । फिर कैसे शिखरों पर पहुंचे बैसाखी पर चलते लोग ! प्यारी नदियों की आहों पर ह्रदय तुम्हारा पिघल गया सच कहता हूँ मित्र हिमालय, जग में नहीं पिघलते लोग ।...

ख़ुशबू नहीं प्यार की महकी जिनके सोच-विचारों में । नागफनी की चुभन मिली उनके दैनिक व्यवहारों में । तू पतझर के पीले पत्तों पर पग धरते डरता है लोग सफलता खोज चुके हैं लाशों के अंबारों में ।...

हमारे घर की दीवारों में अनगिनत दरारें हैं सुनिश्चित है कहीं बुनियाद में ग़लती हुई होगी । क़ुराने पाक, गीता, ग्रन्थ साहिब शीश धुनते हैं हमारे भाव के अनुवाद में गलती हुई होगी ।...

संपदा त्रिलोक की न अब चाहिये मुझे, सपूत कह के प्यार से पुकार दे ओ शारदे । रोम-रोम मातृ-ऋण भार से विनत-नत, शुभ्र उत्तरीय से दुलार दे ओ शारदे ।...

हरगिज़ वो शख्स साहिब किरदार नहीं है जो दिल से मोहब्बत का तरफदार नहीं है सैलानियों से दरिया इशारों में कह गया जो मौज तुम्हे चाहिए उस पार नहीं है...

ऐसे नहीं जाग कर बैठो तुम हो पहरेदार चमन के, चिंता क्या है सोने दो यदि सोते हैं सरदार चमन के, वैसे भी ये बड़े लोग हैं अक्सर धूप चढ़े जगते हैं, व्यवहारों से कहीं अधिक तस्वीरों में अच्छे लगते हैं, ...

मैं धन से निर्धन हूँ पर मन का राजा हूँ तुम जितना चाहो प्यार तुम्हें दे सकता हूँ मन तो मेरा भी चाहा करता है अक्सर बिखरा दूँ सारी ख़ुशी तुम्हारे आंगन में...

सारी धरा राम जन्म से हुई है धन्य निर्विवाद सत्य को विवाद से निकालिए । रोम-रोम में बसे हुए हैं विश्वव्यापी राम राम का महत्व एक वृत्त में न ढालिए...

फूल से बोली कली क्यों व्यस्त मुरझाने में है फ़ायदा क्या गंध औ मकरंद बिखराने में है तूने अपनी उम्र क्यों वातावरण में घोल दी अपनी मनमोहक पंखुरियों की छटा क्यों खोल दी...

न मेरा है न तेरा है ये हिन्दुस्तान सबका है नहीं समझी गई ये बात तो नुकसान सबका है हज़ारों रास्ते खोजे गए उस तक पहुँचने के मगर पहुँचे हुए ये कह गए भगवान सबका है...