ये रोज़ कोई पूछता है मेरे कान में
ये रोज़ कोई पूछता है मेरे कान में हिन्दोस्तान है कहाँ हिन्दोस्तान में इन बादलों की आँख में पानी नहीं रहा तन बेचती है भूख एक मुट्ठी धान में प्रतिबिम्ब के लिए भी कोई बिम्ब चाहिए ये आइने अभिशाप हैं सूने मकान में जनतन्त्र में जोंकों की कोई आस्था नहीं क्या फ़ायदा संशोधनों से संविधान में मानो न मानो तुम 'उदय' लक्षण सुबह के हैं चमकीला तारा कोई नहीं आसमान में

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