फूलों का काँटों-सा होना
काँटे तो काँटे होते हैं उनके चुभने का क्या रोना । मुझको तो अखरा करता है फूलों का काँटों-सा होना । युग-युग तक उनकी मिट्टी से फूलों की ख़ुशबू आती है जिनका जीवन ध्येय रहा है कांटे चुनना कलियाँ बोना । बदनामी के पर होते हैं अपने आप उड़ा करती है मेरे अश्रु बहें बह जाएँ तुम अपना दामन न भिगोना । दुनिया वालों की महफ़िल में पहली पंक्ति उन्हें मिलती है जिनको आता है अवसर पर छुपकर हँसना बन कर रोना । वाणी के नभ में दिनकर-सा ‘उदय’ नहीं तू हो सकता है अगर नहीं तूने सीखा है नये घावों में क़लम डुबोना ।

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