नाम पर मज़हब के ठेकेदारियाँ इतनी कि बस
नाम पर मज़हब के ठेकेदारियाँ इतनी कि बस। सेक्युलर खेमे में हैं सरदारियाँ इतनी कि बस। पीठ के पीछे छुपाए हैं कटोरा भीख का और होठों से बयाँ खुद्दारियाँ इतनी कि बस। पनघटों की रौनकें इतिहास में दाख़िल हुई ख़ूबसूरत आज भी पनिहारियाँ इतनी कि बस। जान जनता और जनार्दन दोनों की मुश्किल में है इन सियासतदानों की अय्यारियाँ इतनी कि बस। तन रंगा फिर मन रंगा फिर आत्मा तक रंग गई आँखों-आँखों में चली पिचकारियाँ इतनी कि बस। ऊपर-ऊपर प्यार की बातें दिखावे के लिए अन्दर-अन्दर युद्ध की तैयारियाँ इतनी कि बस। दो गुलाबी होठों के बाहर हँसी निकली ही थी खिल गईं चारों तरफ़ फुलवारियाँ इतनी कि बस।

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