करुणा का गहरा गुंजार। जिसमें गर्वित विश्व पिघल कर बनता है आँसू की धार॥ विश्व-साँस का नव निर्झर प्रिय, मधु-प्रिय कोकिल का मधु-स्वर प्रिय;...
तारे नभ में अंकुरित हुए। जिस भाँति तुम्हारे विविध रूप मेरे मन में संचरित हुए॥ यह आभा है क्या कुछ मलीन?...
सजल जीवन की सिहरती धार पर, लहर बनकर यदि बहो, तो ले चलूँ यह न मुझसे पूछना, मैं किस दिशा से आ रहा हूँ है कहाँ वह चरणरेखा, जो कि धोने जा रहा हूँ ...
नील नभ में यह किसका जीवन है! वायु की इच्छा के अनुकूल बिगड़ता बनता जिसका लघुतन है॥ चन्द्र रवि की किरणों की धार...
मेरा देखोगे अभिनय? प्रिय, देखो मेरे मन में कितनी पीड़ा! कितना भय!! कितने जीवन से करता--...
इस सोते संसार बीच जग कर सज कर रजनी बाले! कहाँ बेचने ले जाती हो, ये गजरे तारों वाले? ...
उषे, बतला यह सीखा हास कहाँ? इस नीरस नभ में पाया है तूने यह मधुमास कहाँ? अन्धकार के भीतर सोता--...
छिपा उर में कोई अनजान। खोज खोज कर साँस विफल भीतर आती जाती है, पुतली के काले बादल में...
क्या लिखते हो खींच खींच, विद्युत की उज्ज्वल रेखा? मैंने तो नभ को केवल पृथ्वी पर रोते देखा॥...
इस जीवन में वे आये। यह नीरस नभ है वृद्ध किन्तु है उषा-बाल उसके समीप, रजनी मलीन है सजे किन्तु...
यह तुम्हारा हास आया। इन फटे-से बादलों में कौन-सा मधुमास आया? यह तुम्हारा हास आया। आँख से नीरव व्यथा के...
फूल-सी हो फूलवाली। किस सुमन की सांस तुमने आज अनजाने चुरा ली! जब प्रभा की रेख दिनकर ने...
कलियों, यह अवगुण्ठन खोलो। ओस नहीं है, मेरे आँसू से ही मृदु पद धो लो॥ कोकिल-स्वर लेकर आया है यह अशरीर समीर,...
इस सोते संसार बीच जग कर सज कर रजनी बाले! कहाँ बेचने ले जाती हो ये गजरे तारों वाले?...