क्या लिखते हो खींच खींच
क्या लिखते हो खींच खींच, विद्युत की उज्ज्वल रेखा? मैंने तो नभ को केवल पृथ्वी पर रोते देखा॥ बादल के तिरछे तन को स्थिर मैंने कभी न पाया। प्रातः में भी दौड़ गई संध्या की काली छाया॥ जीवन के पहले ही क्षण में कैसा अन्तिम क्षण है? बोलो, क्या मेरे जीवन में छिपा मृत्यु का कण है?

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