छिपा उर में कोई अनजान
छिपा उर में कोई अनजान। खोज खोज कर साँस विफल भीतर आती जाती है, पुतली के काले बादल में वर्षा सुख पाती है; एक वेदना विद्युत-सी खिंच खिंच कर चुभ जाती है, एक रागिनी चातक-स्वर में सिहर सिहर गाती है। कौन समझे-समझावे गान! छिपा उर में कोई अनजान।

Read Next