तारे नभ में अंकुरित हुए
तारे नभ में अंकुरित हुए। जिस भाँति तुम्हारे विविध रूप मेरे मन में संचरित हुए॥ यह आभा है क्या कुछ मलीन? अपने संकोचन में विलीन-- पर दुग्ध-धार से किरण-गान मुझसे मिल कर हैं स्वरित हुए॥ देखो, इतना है लघु विकास, मेरे जीवन के आस पास। पर सघन अँधेरे के समान ही दूर दैन्य दुख दुरित हुए॥

Read Next