कलियों, यह अवगुण्ठन खोलो
कलियों, यह अवगुण्ठन खोलो। ओस नहीं है, मेरे आँसू से ही मृदु पद धो लो॥ कोकिल-स्वर लेकर आया है यह अशरीर समीर, सुखमय सौरभ आज हुआ है पंचबाण का तीर; मन में कितना है रहस्य ओ लघु सुकुमार शरीर! व्योम तुम्हारे रुचिर रंग में डूबा है गम्भीर, सुरभि-शब्द की एक लहर में, तुम क्या हो, कुछ बोलो। कलियों, यह अवगुण्ठन खोलो॥

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