इस जीवन में वे आये
इस जीवन में वे आये। यह नीरस नभ है वृद्ध किन्तु है उषा-बाल उसके समीप, रजनी मलीन है सजे किन्तु आशाओं के कितने प्रदीप, विस्तृत सागर के अश्रुपूर्ण उर में संचित है एक दीप, स्वाती-शिशु मोती हृदय-रूप ज्योतित करता है सरस सीप, इस भाँति न जाने किस पथ से वे मुझमें आज समाये!! इस जीवन में वे आये। मेरी निद्रा का अन्धकार नव स्वर्ण स्वप्न का बना दास, कुशला कोकिल का कण्ठ किसी कूजन से करता है विलास, मेरी तन्त्री के तार तार ले रहे रागिनी-रूप स्वास, मेरी छवि-कलिका में प्रशान्त छिपकर सोता है नव-विकास, सुमनों की उँगली से वसन्त ने जैसे वृक्ष जगाये॥ इस जीवन में वे आये।

Read Next