नानी का गुलकंद
मुझे तुम्हारी नानीजी ने, डब्बा-भर गुलकंद दिया। और तुम्हारे नानीजी ने कविता दी औ’ छंद दिया॥ दोनों लेकर निकला ही था, बटमारों ने घेर लिया। छीनछान गुलकंद खा गए कविता सुन मुँह फेर लिया॥ पर कुछ समझदार भी थे, जो कविता सुनकर गले लगे। अपना दे गुलकंद उन्होंने खाली डब्बा बंद किया॥ अब नानी को लिख देना, उनका गुलकंद सलामत है। और हमें बतलाना कविता के बारे में क्या मत है॥

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