एक सूनी नाव
एक सूनी नाव तट पर लौट आई। रोशनी राख-सी जल में घुली, बह गई, बन्द अधरों से कथा सिमटी नदी कह गई, रेत प्यासी नयन भर लाई। भींगते अवसाद से हवा श्लथ हो गईं हथेली की रेख काँपी लहर-सी खो गई मौन छाया कहीं उतराई। स्वर नहीं, चित्र भी बहकर गए लग कहीं, स्याह पड़ते हुए जल में रात खोयी-सी उभर आई। एक सूनी नाव तट पर लौट आई।

Read Next