शाम-एक किसान
आकाश का साफ़ा बाँधकर सूरज की चिलम खींचता बैठा है पहाड़, घुटनों पर पड़ी है नही चादर-सी, पास ही दहक रही है पलाश के जंगल की अँगीठी अंधकार दूर पूर्व में सिमटा बैठा है भेड़ों के गल्‍ले-सा। अचानक- बोला मोर। जैसे किसी ने आवाज़ दी- 'सुनते हो'। चिलम औंधी धुआँ उठा- सूरज डूबा अंधेरा छा गया।

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