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यह देखि धतूरे के पात चबात औ गात सों धूलि लगावत है। चहुँ ओर जटा अंटकै लटके फनि सों कफनी पहरावत हैं। रसखानि गेई चितवैं चित दे तिनके दुखदुंद भाजावत हैं। गजखाल कपाल की माल विसाल सोगाल बजावत आवत है।...

अधर लगाइ रस प्याइ बाँसुरी बजाई मेरो नाम गाइ हाइ जादू कियो मन में। नटखट नवल सुघर नंदनंदन ने, करि के अचैत चेत हरि कै जतन में।...

गावैं गुनी गनिका गन्धर्व औ सारद सेस सबै गुण गावैं। नाम अनन्त गनन्त गनेस जो ब्रह्मा त्रिलोचन पार न पावैं॥ जोगी जती तपसी अरु सिद्ध निरन्तर जाहिं समाधि लगावैं। ताहिं अहीर की छोहरियाँ छछिया भरि छाछ पे नाच नचावैं॥...

मानुस हौं तो वही रसखान, बसौं मिलि गोकुल गाँव के ग्वारन। जो पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥ पाहन हौं तो वही गिरि को, जो धर्यो कर छत्र पुरंदर धारन। जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदीकूल कदम्ब की डारन॥...

प्रान वही जु रहैं रिझि वापर, रूप वही जिहिं वाहि रिझायो। सीस वही जिहिं वे परसे पग, अंग वही जिहीं वा परसायो दूध वही जु दुहायो वही सों, दही सु सही जु वहीं ढुरकायो। और कहाँ लौं कहौं 'रसखान री भाव वही जू वही मन भायो॥...

लाडली लाल लर्तृ लखिसै अलि, पुन्जनि कुन्जनी में छवि गाढ़ी। उपजी ज्यौं बिजुरी सो जुरी चहुँ, गूजरी केलिकलासम काढ़ी।...

आवत है बन ते मनमोहन, गाइन संग लसै ब्रज-ग्वाला। बेनु बजावत गावत गीत, अभीत इतै करिगौ कछु ख्याला। हेरत हेरि चकै चहुँ ओर ते झाँकी झरोखन तै ब्रजबाला। देखि सुआनन को रसखानि तज्यौ सब द्योस को ताप कसाला।...

आवत है वन ते मनमोहन, गाइन संग लसै ब्रज-ग्वाला। बेनु बजावत गावत गीत, अभीत इतै करिगौ कछु रत्याना। हेरत हेरित चकै चहुँ ओर ते झाँकी झरोखन तै ब्रजबाला। देखि सुआनन को रसखनि तज्यौ सब द्योस को ताप कसाला।...

दानी नए भए माँबन दान सुनै गुपै कंस तो बांधे नगैहो रोकत हीं बन में रसखानि पसारत हाथ महा दुख पैहो। टूटें धरा बछरदिक गोधन जोधन हे सु सबै पुनि दहो। जेहै जो भूषण काहू तिया कौ तो मोल छला के लाला न विकेहो।...

कंचन मंदिर ऊँचे बनाई के मानिक लाइ सदा झलकेयत। प्रात ही ते सगरी नगरी। नाग-मोतिन ही की तुलानि तलेयत।...

आयो हुतो नियरे रसखानि कहा कहुं तू न गई वहि ठैयाँ या ब्रज में सिगरी बनिता सब बारति प्राननि लेति बलैया कोऊ न काहु की कानि करै कछु चेटक सी जु करयो जदुरैया गाइगो तान जमाइगो नेह रिझाइगो प्रान चराइगो गैया...

गाई दहाई न या पे कहूँ, नकहूँ यह मेरी गरी, निकस्थौ है। धीर समीर कालिंदी के तीर, टूखरयो रहे आजु ही डीठि परयो है।...

फागुन लाग्यौ सखि जब तें, तब तें ब्रजमंडल धूम मच्यौ है । नारि नवेली बचै नहीं एक, विसेष इहैं सबै प्रेम अँच्यौ है ॥ साँझ-सकारे कही रसखान सुरंग गुलाल लै खेल रच्यौ है । को सजनी निलजी न भई, अरु कौन भटू जिहिं मान बच्यौ है ॥...

मोर के चंदन मोर बन्यौ दिन दूलह हे अली नंद को नंद। श्री कृषयानुसुता दुलही दिन जोरी बनी विधवा सुखकंदन। आवै कहयो न कुछु रसखानि री दोऊ फंदे छवि प्रेम के फंदन। जाहि बिलोकैं सबै सुख पावत ये ब्रज जीवन हैं दुख ढ़ंढन।...

जेहि बिनु जाने कछुहि नहिं जान्यों जात बिसेस सोई प्रेम जेहि आन कै रही जात न कछु सेस प्रेम फाँस सो फँसि मरै सोई जियै सदाहिं प्रेम मरम जाने बिना मरि कोउ जीवत नाहिं...

आगु गई हुति भोर ही हों रसखानि, रई बहि नंद के भौनंहि। बाको जियों जुगल लाख करोर जसोमति, को सुख जात कहमों नहिं।...

खेलत फाग सुहाग भरी, अनुरागहिं लालन क धरि कै । भारत कुंकुम, केसर की पिचकारिन में रंग को भरि कै ॥ गेरत लाल गुलाल लली, मनमोहन मौज मिटा करि कै । जात चली रसखान अली, मदमस्त मनी मन कों हरि कै ॥...

संकर से सुर जाहिं जपैं चतुरानन ध्यानन धर्म बढ़ावैं। नेक हिये में जो आवत ही जड़ मूढ़ महा रसखान कहावै॥ जा पर देव अदेव भुअंगन वारत प्रानन प्रानन पावैं। ताहिं अहीर की छोहरियाँ छछिया भरि छाछ पे नाच नचावैं॥...

प्रेम अगम अनुपम अमित सागर सरिस बखान। जो आवत यहि ढिग बहुरि जात नाहिं रसखान। आनंद-अनुभव होत नहिं बिना प्रेम जग जान। के वह विषयानंद के ब्राह्मानंद बखान।...

आज भटू मुरली बट के तट के नंद के साँवरे रास रच्योरी। नैननि सैननि बैननि सो नहिं कोऊ मनोहर भाव बच्योरी। जद्यपि राखन कों कुलकानि सबैं ब्रजबालन प्रान पच्योरी। तथापि वा रसखानि के हाथ बिकानि कों अंत लच्यो पै लच्योरी।...

आई सबै ब्रज गोपालजी ठिठकी ह्मवै गली जमुना जल नहाने। ओचक आइ मिले रसखानि बजावत बेनू सुनावत ताने।...

प्रेम प्रेम सब कोउ कहत, प्रेम न जानत कोइ। जो जन जानै प्रेम तो, मरै जगत क्यों रोइ॥ कमल तंतु सो छीन अरु, कठिन खड़ग की धार। अति सूधो टढ़ौ बहुरि, प्रेमपंथ अनिवार॥...

बेद की औषद खाइ कछु न करै बहु संजम री सुनि मोसें। तो जलापान कियौ रसखानि सजीवन जानि लियो रस तेर्तृ। एरी सुघामई भागीरथी नित पथ्य अपथ्य बने तोहिं पोसे। आक धतूरो चाबत फिरे विष खात फिरै सिव तेऐ भरोसें।...

कीगै कहा जुपै लोग चवाब सदा करिबो करि हैं बृज मारो। सीत न रोकत राखत कागु सुगावत ताहिरी गाँव हारो।...

बैन वही उनकौ गुन गाइ, औ कान वही उन बैन सों सानी। हाथ वही उन गात सरैं, अरु पाइ वही जु वही अनुजानी॥ जान वही उन प्रानके संग, औ मान वही जु करै मनमानी। त्यों रसखानि वही रसखानि, जु है रसखानि, सो है रसखानी॥...

गोरी बाल थोरी वैस, लाल पै गुलाल मूठि - तानि कै चपल चली आनँद-उठान सों। वाँए पानि घूँघट की गहनि चहनि ओट, चोटन करति अति तीखे नैन-बान सों॥...

या लकुटी अरु कामरिया पर, राज तिहूँ पुर को तजि डारौं। आठहुँ सिद्धि, नवों निधि को सुख, नंद की धेनु चराय बिसारौं॥...