बेद की औषद खाइ कछु न करै
बेद की औषद खाइ कछु न करै बहु संजम री सुनि मोसें। तो जलापान कियौ रसखानि सजीवन जानि लियो रस तेर्तृ। एरी सुघामई भागीरथी नित पथ्य अपथ्य बने तोहिं पोसे। आक धतूरो चाबत फिरे विष खात फिरै सिव तेऐ भरोसें।

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