आगु गई हुति भोर ही हों रसखानि
आगु गई हुति भोर ही हों रसखानि, रई बहि नंद के भौनंहि। बाको जियों जुगल लाख करोर जसोमति, को सुख जात कहमों नहिं। तेल लगाई लगाई के अजन भौहिं बनाई बनाई डिठौनहिं। डालि हमेलिन हार निहारत बारात ज्यों, चुचकारत छोनहिं।

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