हिलाल ओ बद्र दोनों में 'अमीर' उन की तजल्ली है ये ख़ाका है जवानी का वो नक़्शा है लड़कपन का...
ख़ुदा ने नेक सूरत दी तो सीखो नेक बातें भी बुरे होते हो अच्छे हो के ये क्या बद-ज़बानी है...
तीर पर तीर लगाओ तुम्हें डर किस का है सीना किस का है मिरी जान जिगर किस का है ख़ौफ़-ए-मीज़ान-ए-क़यामत नहीं मुझ को ऐ दोस्त तू अगर है मिरे पल्ले में तो डर किस का है...
फूलों में अगर है बू तुम्हारी काँटों में भी होगी ख़ू तुम्हारी उस दिल पे हज़ार जान सदक़े जिस दिल में है आरज़ू तुम्हारी...
दिल जो सीने में ज़ार सा है कुछ ग़म से बे-इख़्तियार सा है कुछ रख़्त-ए-हस्ती बदन पे ठीक नहीं जामा-ए-मुस्तआर सा है कुछ...
मिरे बस में या तो या-रब वो सितम-शिआर होता ये न था तो काश दिल पर मुझे इख़्तियार होता पस-ए-मर्ग काश यूँ ही मुझे वस्ल-ए-यार होता वो सर-ए-मज़ार होता मैं तह-ए-मज़ार होता...
जब से बुलबुल तू ने दो तिनके लिए टूटती हैं बिजलियाँ इन के लिए है जवानी ख़ुद जवानी का सिंगार सादगी गहना है इस सिन के लिए...