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मिली है दुख़्तर-ए-रज़ लड़-झगड़ के क़ाज़ी से जिहाद कर के जो औरत मिले हराम नहीं...

शब-ए-विसाल बहुत कम है आसमाँ से कहो कि जोड़ दे कोई टुकड़ा शब-ए-जुदाई का...

वही रह जाते हैं ज़बानों पर शेर जो इंतिख़ाब होते हैं...

देख ले बुलबुल ओ परवाना की बेताबी को हिज्र अच्छा न हसीनों का विसाल अच्छा है...

रास्ते और तवाज़ो' में है रब्त-ए-क़ल्बी जिस तरह लाम अलिफ़ में है अलिफ़ लाम में है...

तुम को आता है प्यार पर ग़ुस्सा मुझ को ग़ुस्से पे प्यार आता है...

शैख़ कहता है बरहमन को बरहमन उस को सख़्त काबा ओ बुत-ख़ाना में पत्थर है पत्थर का जवाब...

कौन सी जा है जहाँ जल्वा-ए-माशूक़ नहीं शौक़-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर...

हिलाल ओ बद्र दोनों में 'अमीर' उन की तजल्ली है ये ख़ाका है जवानी का वो नक़्शा है लड़कपन का...

मुश्किल बहुत पड़ेगी बराबर की चोट है आईना देखिएगा ज़रा देख-भाल के...

ख़ुदा ने नेक सूरत दी तो सीखो नेक बातें भी बुरे होते हो अच्छे हो के ये क्या बद-ज़बानी है...

बाग़बाँ कलियाँ हों हल्के रंग की भेजनी हैं एक कम-सिन के लिए...

किस ढिटाई से वो दिल छीन के कहते हैं 'अमीर' वो मिरा घर है रहे जिस में मोहब्बत मेरी...

फ़ुर्क़त में मुँह लपेटे मैं इस तरह पड़ा हूँ जिस तरह कोई मुर्दा लिपटा हुआ कफ़न में...

आए बुत-ख़ाने से काबे को तो क्या भर पाया जा पड़े थे तो वहीं हम को पड़ा रहना था...

हाथ रख कर मेरे सीने पे जिगर थाम लिया तुम ने इस वक़्त तो गिरता हुआ घर थाम लिया...

अल्लाह-रे सादगी नहीं इतनी उन्हें ख़बर मय्यत पे आ के पूछते हैं इन को क्या हुआ...

किसी रईस की महफ़िल का ज़िक्र ही क्या है ख़ुदा के घर भी न जाएँगे बिन बुलाए हुए...

आहों से सोज़-ए-इश्क़ मिटाया न जाएगा फूँकों से ये चराग़ बुझाया न जाएगा...

लुत्फ़ आने लगा जफ़ाओं में वो कहीं मेहरबाँ न हो जाए...

ख़ून-ए-नाहक़ कहीं छुपता है छुपाए से 'अमीर' क्यूँ मिरी लाश पे बैठे हैं वो दामन डाले...

तरफ़-ए-काबा न जा हज के लिए नादाँ है ग़ौर कर देख कि है ख़ाना-ए-दिल मस्कन-ए-दोस्त...

तीर पर तीर लगाओ तुम्हें डर किस का है सीना किस का है मिरी जान जिगर किस का है ख़ौफ़-ए-मीज़ान-ए-क़यामत नहीं मुझ को ऐ दोस्त तू अगर है मिरे पल्ले में तो डर किस का है...

सादा समझो न इन्हें रहने दो दीवाँ में 'अमीर' यही अशआर ज़बानों पे हैं रहने वाले...

आँखें दिखलाते हो जोबन तो दिखाओ साहब वो अलग बाँध के रक्खा है जो माल अच्छा है...

ख़ंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम 'अमीर' सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है...

फूलों में अगर है बू तुम्हारी काँटों में भी होगी ख़ू तुम्हारी उस दिल पे हज़ार जान सदक़े जिस दिल में है आरज़ू तुम्हारी...

दिल जो सीने में ज़ार सा है कुछ ग़म से बे-इख़्तियार सा है कुछ रख़्त-ए-हस्ती बदन पे ठीक नहीं जामा-ए-मुस्तआर सा है कुछ...

तूल-ए-शब-ए-फ़िराक़ का क़िस्सा न पूछिए महशर तलक कहूँ मैं अगर मुख़्तसर कहूँ...

बोसा लिया जो उस लब-ए-शीरीं का मर गए दी जान हम ने चश्मा-ए-आब-ए-हयात पर...

ख़ुश्क सेरों तन-ए-शाएर का लहू होता है तब नज़र आती है इक मिस्रा-ए-तर की सूरत...

वाए क़िस्मत वो भी कहते हैं बुरा हम बुरे सब से हुए जिन के लिए...

ख़ंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम 'अमीर' सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है...

हो गया बंद दर-ए-मै-कदा क्या क़हर हुआ शौक़-ए-पा-बोस-ए-हसीनाँ जो तुझे था ऐ दिल...

मिरा ख़त उस ने पढ़ा पढ़ के नामा-बर से कहा यही जवाब है इस का कोई जवाब नहीं...

मिरे बस में या तो या-रब वो सितम-शिआर होता ये न था तो काश दिल पर मुझे इख़्तियार होता पस-ए-मर्ग काश यूँ ही मुझे वस्ल-ए-यार होता वो सर-ए-मज़ार होता मैं तह-ए-मज़ार होता...

ज़ाहिद उमीद-ए-रहमत-ए-हक़ और हज्व-ए-मय पहले शराब पी के गुनाह-गार भी तो हो...

उल्फ़त में बराबर है वफ़ा हो कि जफ़ा हो हर बात में लज़्ज़त है अगर दिल में मज़ा हो...

जब से बुलबुल तू ने दो तिनके लिए टूटती हैं बिजलियाँ इन के लिए है जवानी ख़ुद जवानी का सिंगार सादगी गहना है इस सिन के लिए...

सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता निकलता आ रहा है आफ़्ताब आहिस्ता आहिस्ता...