दिल जो सीने में ज़ार सा है कुछ
दिल जो सीने में ज़ार सा है कुछ ग़म से बे-इख़्तियार सा है कुछ रख़्त-ए-हस्ती बदन पे ठीक नहीं जामा-ए-मुस्तआर सा है कुछ चश्म-ए-नर्गिस कहाँ वो चश्म कहाँ नश्शा कैसा ख़ुमार सा है कुछ नख़्ल-ए-उम्मीद में न फूल न फल शजर-ए-बे-बहार सा है कुछ साक़िया हिज्र में ये अब्र नहीं आसमाँ पर ग़ुबार सा है कुछ कल तो आफ़त थी दिल की बेताबी आज भी बे-क़रार सा है कुछ मुर्दा है दिल तो गोर है सीना दाग़ शम-ए-मज़ार सा है कुछ इस को दुनिया की उस को ख़ुल्द की हिर्स रिंद है कुछ न पारसा है पहले इस से था होशियार 'अमीर' अब तो बे-इख़्तियार सा है कुछ

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