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शाम हुई है यार आए हैं यारों के हमराह चलें आज वहाँ क़व्वाली होगी 'जौन' चलो दरगाह चलें...

सारी गली सुनसान पड़ी थी बाद-ए-फ़ना के पहरे में हिज्र के दालान और आँगन में बस इक साया ज़िंदा था...

क्या है जो बदल गई है दुनिया मैं भी तो बहुत बदल गया हूँ...

जाते जाते आप इतना काम तो कीजे मिरा याद का सारा सर-ओ-सामाँ जलाते जाइए...

सिलसिला जुम्बा इक तन्हा से रूह किसी तन्हा की थी एक आवाज़ अभी आई थी वो आवाज़ हवा की थी बे-दुनियाई ने इस दिल की और भी दुनिया-दार किया दिल पर ऐसी टूटी दुनिया तर्क ज़रा दुनिया की थी...

बिन तुम्हारे कभी नहीं आई क्या मिरी नींद भी तुम्हारी है...

ख़मोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी कोई हंगामा बरपा क्यूँ करें हम...

तेग़-बाज़ी का शौक़ अपनी जगह आप तो क़त्ल-ए-आम कर रहे हैं...

अब मिरी कोई ज़िंदगी ही नहीं अब भी तुम मेरी ज़िंदगी हो क्या...

अपने सर इक बला तो लेनी थी मैं ने वो ज़ुल्फ़ अपने सर ली है...

तुम्हारी याद में जीने की आरज़ू है अभी कुछ अपना हाल सँभालूँ अगर इजाज़त हो...

कितनी दिलकश हो तुम कितना दिल-जू हूँ मैं क्या सितम है कि हम लोग मर जाएँगे...

जम्अ' हम ने किया है ग़म दिल में इस का अब सूद खाए जाएँगे...

अपने सब यार काम कर रहे हैं और हम हैं कि नाम कर रहे हैं तेग़-बाज़ी का शौक़ अपनी जगह आप तो क़त्ल-ए-आम कर रहे हैं...

बजा इरशाद फ़रमाया गया है कि मुझ को याद फ़रमाया गया है इनायत की हैं ना-मुम्किन उमीदें करम ईजाद फ़रमाया गया है...

हो रहा हूँ मैं किस तरह बर्बाद देखने वाले हाथ मलते हैं...

अपना रिश्ता ज़मीं से ही रक्खो कुछ नहीं आसमान में रक्खा...

हम आँधियों के बन में किसी कारवाँ के थे जाने कहाँ से आए हैं जाने कहाँ के थे ऐ जान-ए-दास्ताँ तुझे आया कभी ख़याल वो लोग क्या हुए जो तिरी दास्ताँ की थे...

तुझ में पड़ा हुआ हूँ हरकत नहीं है मुझ में हालत न पूछियो तू हालत नहीं है मुझ में अब तो नज़र में आ जा बाँहों के घर में आ जा ऐ जान तेरी कोई सूरत नहीं है मुझ में...

ये जो सुना इक दिन वो हवेली यकसर बे-आसार गिरी हम जब भी साए में बैठे दिल पर इक दीवार गिरी जूँही मुड़ कर देखा मैं ने बीच उठी थी इक दीवार बस यूँ समझो मेरे ऊपर बिजली सी इक बार गिरी...

ऐ शख़्स मैं तेरी जुस्तुजू से बे-ज़ार नहीं हूँ थक गया हूँ...

आख़िरी बात तुम से कहना है याद रखना न तुम कहा मेरा...

घर नया बर्तन नए कपड़े नए इन पुराने काग़ज़ों का क्या करें...

एक साया मिरा मसीहा था कौन जाने वो कौन था क्या था वो फ़क़त सेहन तक ही आती थी मैं भी हुजरे से कम निकलता था...

ख़र्च चलेगा अब मिरा किस के हिसाब में भला सब के लिए बहुत हूँ मैं अपने लिए ज़रा नहीं...

तुम्हारी याद मिरे दिल का दाग़ है लेकिन सफ़र के वक़्त तो बे-तरह याद आती हो बरस बरस की हो आदत का जब हिसाब तो फिर बहुत सताती हो जानम बहुत सताती हो...

नई ख़्वाहिश रचाई जा रही है तिरी फ़ुर्क़त मनाई जा रही है...

ऐ वस्ल कुछ यहाँ न हुआ कुछ नहीं हुआ उस जिस्म की मैं जाँ न हुआ कुछ नहीं हुआ तू आज मेरे घर में जो मेहमाँ है ईद है तू घर का मेज़बाँ न हुआ कुछ नहीं हुआ...

चाहता हूँ कि भूल जाऊँ तुम्हें और ये सब दरीचा-हा-ए-ख़याल जो तुम्हारी ही सम्त खुलते हैं बंद कर दूँ कुछ इस तरह कि यहाँ...

मिल रही हो बड़े तपाक के साथ मुझ को यकसर भुला चुकी हो क्या...

मैं रहा उम्र भर जुदा ख़ुद से याद मैं ख़ुद को उम्र भर आया...

हमें शिकवा नहीं इक दूसरे से मनाना चाहिए इस पर ख़ुशी क्या...

अब तो उस के बारे में तुम जो चाहो वो कह डालो वो अंगड़ाई मेरे कमरे तक तो बड़ी रूहानी थी...

इलाज ये है कि मजबूर कर दिया जाऊँ वगरना यूँ तो किसी की नहीं सुनी मैं ने...

तुम्हारा हिज्र मना लूँ अगर इजाज़त हो मैं दिल किसी से लगा लूँ अगर इजाज़त हो तुम्हारे ब'अद भला क्या हैं व'अदा-ओ-पैमाँ बस अपना वक़्त गँवा लूँ अगर इजाज़त हो...

गँवाई किस की तमन्ना में ज़िंदगी मैं ने वो कौन है जिसे देखा नहीं कभी मैं ने...

इक हुनर है जो कर गया हूँ मैं सब के दिल से उतर गया हूँ मैं कैसे अपनी हँसी को ज़ब्त करूँ सुन रहा हूँ कि घिर गया हूँ मैं...

ये अक्सर तल्ख़-कामी सी रही क्या मोहब्बत ज़क उठा कर आई थी क्या न कसदम हैं न अफ़ई हैं न अज़दर मिलेंगे शहर में इंसान ही क्या...

यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे...

हम जी रहे हैं कोई बहाना किए बग़ैर उस के बग़ैर उस की तमन्ना किए बग़ैर अम्बार उस का पर्दा-ऐ-हुरमत बना मियाँ दीवार तक नहीं गिरी पर्दा किए बग़ैर...