Syed Fazl-ul-Hasan
Hasrat Mohani
( 1875 - 1951 )

Maulana Hasrat Mohani (Hindi: हसरत मोहानी) was an Indian activist in the Indian Independence Movement, and a noted poet of the Urdu language. The real name of Maulana was Syed Fazl-ul-Hasan (Hindi: सय्यद फ़ज़ल-उल-हसन). More

नज़्ज़ारा-ए-पैहम का सिला मेरे लिए है हर सम्त वो रुख़ जल्वा-नुमा मेरे लिए है उस चेहरा-ए-अनवर की ज़िया मेरे लिए है वो ज़ुल्फ़-ए-सियह ताब-ए-दोता मेरे लिए है...

महरूम-ए-तरब है दिल-ए-दिल-गीर अभी तक बाक़ी है तिरे इश्क़ की तासीर अभी तक वस्ल उस बुत-ए-बद-ख़ू का मयस्सर नहीं होता वाबस्ता-ए-तक़दीर है तदबीर अभी तक...

मुदावा-ए-दिल-ए-दीवाना करते ये करते हम तो कुछ अच्छा न करते वफ़ा सादिक़ अगर होती हमारी वो करते भी तो जौर इतना न करते...

न समझे दिल फ़रेब-ए-आरज़ू को न हम छोड़ें तुम्हारी जुस्तुजू को तिरी तलवार से ऐ शाह-ए-ख़ूबाँ मोहब्बत हो गई है हर गुलू को...

न सही गर उन्हें ख़याल नहीं कि हमारा भी अब वो हाल नहीं याद उन्हें वादा-ए-विसाल नहीं कब किया था यही ख़याल नहीं...

मुक़र्रर कुछ न कुछ इस में रक़ीबों की भी साज़िश है वो बे-परवा इलाही मुझ पे क्यूँ गर्म-ए-नवाज़िश है प-ए-मश्क़-ए-तग़ाफ़ुल आप ने मख़्सूस ठहराया हमें ये बात भी मिंजुमल-ए-असबाब नाज़िश है...

न सूरत कहीं शादमानी की देखी बहुत सैर दुनिया-ए-फ़ानी की देखी मिरी चश्म-ए-ख़ूँ-बार में ख़ूब रह कर बहार आप ने गुल-फ़िशानी की देखी...

निगाह-ए-यार जिसे आश्ना-ए-राज़ करे वो अपनी ख़ूबी-ए-क़िस्मत पे क्यूँ न नाज़ करे दिलों को फ़िक्र-ए-दो-आलम से कर दिया आज़ाद तिरे जुनूँ का ख़ुदा सिलसिला दराज़ करे...

यूँ तो आशिक़ तिरा ज़माना हुआ मुझ सा जाँ-बाज़ दूसरा न हुआ ख़ुद-ब-ख़ुद बू-ए-यार फैल गई कोई मिन्नत-ए-कश-ए-सबा न हुआ...

पैरव-ए-मस्लक-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा होते हैं हम तेरी राह-ए-मोहब्बत में फ़ना होते हैं शर्म कर शर्म कि ऐ जज़्बा-ए-तासीर-ए-वफ़ा तेरे हाथों वो पशीमान-ए-जफ़ा होते हैं...