महरूम-ए-तरब है दिल-ए-दिल-गीर अभी तक
महरूम-ए-तरब है दिल-ए-दिल-गीर अभी तक बाक़ी है तिरे इश्क़ की तासीर अभी तक वस्ल उस बुत-ए-बद-ख़ू का मयस्सर नहीं होता वाबस्ता-ए-तक़दीर है तदबीर अभी तक इक बार सुनी थी सो मिरे दिल में है मौजूद ऐ जान-ए-तमन्ना तिरी तक़रीर अभी तक सीखी थी जो आग़ाज़-ए-मोहब्बत में क़लम ने बाक़ी है वो रंगीनी-ए-तहरीर अभी तक इस दर्जा न बेताब हो ऐ शौक़-ए-शहादत है मियान में उस शोख़ की शमशीर अभी तक कहने को तो मैं भूल गया हूँ मगर ऐ यार है ख़ाना-ए-दिल में तिरी तस्वीर अभी तक भूली नहीं दिल को तिरी दुज़-दीदा-निगाही पहलू में है कुछ कुछ ख़लिश-ए-तीर अभी तक थे हक़ पे वो बे-शक कि न होते तो न होता दुनिया में बपा मातम-ए-शब्बीर अभी तक गुज़रे बहुत उस्ताद मगर रंग-ए-असर में बे-मिस्ल है 'हसरत' सुख़न-ए-'मीर' अभी तक

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