न सही गर उन्हें ख़याल नहीं
न सही गर उन्हें ख़याल नहीं कि हमारा भी अब वो हाल नहीं याद उन्हें वादा-ए-विसाल नहीं कब किया था यही ख़याल नहीं ऐसे बिगड़े वो सुन के शौक़ की बात आज तक हम से बोल-चाल नहीं मुझ को अब ग़म ये है कि बाद मिरे ख़ातिर-ए-यार बे-मलाल नहीं अफ़्व-ए-हक़ का है मय-कशों पे नुज़ूल रेज़़िश-ए-अब्र-ए-बरशगाल नहीं हम पे क्यूँ अर्ज़-ए-हाल-ए-दिल पे इताब एलची को कहीं ज़वाल नहीं सुन के मुझ से वो ख़्वाहिश-ए-पाबोस हँस के कहने लगे मजाल नहीं दिल को है याद शौक़ का वो हुनर जिस से बढ़ कर कोई कमाल नहीं आप नादिम न हों कि 'हसरत' से शिकवा-ए-ग़म का एहतिमाल नहीं

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