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तुम मोहब्बत को खेल कहते हो हम ने बर्बाद ज़िंदगी कर ली...

शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है...

सुनाते हैं मुझे ख़्वाबों की दास्ताँ अक्सर कहानियों के पुर-असरार लब तुम्हारी तरह...

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा इतना मत चाहो उसे वो बेवफ़ा हो जाएगा...

सब लोग अपने अपने ख़ुदाओं को लाए थे एक हम ऐसे थे कि हमारा ख़ुदा न था...

प्यार ही प्यार है सब लोग बराबर हैं यहाँ मय-कदे में कोई छोटा न बड़ा जाम उठा...

पहली बार नज़रों ने चाँद बोलते देखा हम जवाब क्या देते खो गए सवालों में...

रात का इंतिज़ार कौन करे आज कल दिन में क्या नहीं होता...

आशिक़ी में बहुत ज़रूरी है बेवफ़ाई कभी कभी करना...

अजीब रात थी कल तुम भी आ के लौट गए जब आ गए थे तो पल भर ठहर गए होते...

मेरा शैतान मर गया शायद मेरे सीने पे सो रहा है कोई...

कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बंधा हुआ वो ग़ज़ल का लहजा नया नया न कहा हुआ न सुना हुआ जिसे ले गई है अभी हवा वो वरक़ था दिल की किताब का कहीं आँसुओं से मिटा हुआ कहीं आँसुओं से लिखा हुआ...

पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी है ख़ुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है...

हमारे पास तो आओ बड़ा अंधेरा है कहीं न छोड़ के जाओ बड़ा अंधेरा है उदास कर गए बे-साख़्ता लतीफ़े भी अब आँसुओं से रुलाओ बड़ा अँधेरा है...

गले में उस के ख़ुदा की अजीब बरकत है वो बोलता है तो इक रौशनी सी होती है...

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है उसे चुपके चुपके पढ़ा करो कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो...

लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख जाए यूँ याद तिरी शब भर सीने में सुलगती है...

किसी की याद में पलकें ज़रा भिगो लेते उदास रात की तन्हाइयों में रो लेते दुखों का बोझ अकेले नहीं सँभलता है कहीं वो मिलता तो उस से लिपट के रो लेते...

भीगी हुई आँखों का ये मंज़र न मिलेगा घर छोड़ के मत जाओ कहीं घर न मिलेगा फिर याद बहुत आएगी ज़ुल्फ़ों की घनी शाम जब धूप में साया कोई सर पर न मिलेगा...

सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं माँगा ख़ुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं सोचा तुझे देखा तुझे चाहा तुझे पूजा तुझे मेरी ख़ता मेरी वफ़ा तेरी ख़ता कुछ भी नहीं...

मिरी ज़बाँ पे नए ज़ाइक़ों के फल लिख दे मिरे ख़ुदा तू मिरे नाम इक ग़ज़ल लिख दे मैं चाहता हूँ ये दुनिया वो चाहता है मुझे ये मसअला बड़ा नाज़ुक है कोई हल लिख दे...

कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता...

बड़े ताजिरों की सताई हुई ये दुनिया दुल्हन है जलाई हुई भरी दोपहर का खिला फूल है पसीने में लड़की नहाई हुई...

मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी...

पहला सा वो ज़ोर नहीं है मेरे दुख की सदाओं में शायद पानी नहीं रहा है अब प्यासे दरियाओं में जिस बादल की आस में जोड़े खोल लिए हैं सुहागन ने वो पर्बत से टकरा कर बरस चुका सहराओं में...

रात तेरी यादों ने दिल को इस तरह छेड़ा जैसे कोई चुटकी ले नर्म नर्म गालों में...

कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नज़र को ख़बर न हो मुझे एक रात नवाज़ दे मगर इस के बाद सहर न हो वो बड़ा रहीम ओ करीम है मुझे ये सिफ़त भी अता करे तुझे भूलने की दुआ करूँ तो मिरी दुआ में असर न हो...

मैं बोलता हूँ तो इल्ज़ाम है बग़ावत का मैं चुप रहूँ तो बड़ी बेबसी सी होती है...

सोए कहाँ थे आँखों ने तकिए भिगोए थे हम भी कभी किसी के लिए ख़ूब रोए थे अँगनाई में खड़े हुए बेरी के पेड़ से वो लोग चलते वक़्त गले मिल के रोए थे...

सर-ए-राह कुछ भी कहा नहीं कभी उस के घर मैं गया नहीं मैं जनम जनम से उसी का हूँ उसे आज तक ये पता नहीं उसे पाक नज़रों से चूमना भी इबादतों में शुमार है कोई फूल लाख क़रीब हो कभी मैं ने उस को छुआ नहीं...

अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा तुम्हें जिस ने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो...

कोई लश्कर कि धड़कते हुए ग़म आते हैं शाम के साए बहुत तेज़ क़दम आते हैं दिल वो दरवेश है जो आँख उठाता ही नहीं उस के दरवाज़े पे सौ अहल-ए-करम आते हैं...

बे-तहाशा सी ला-उबाली हँसी छिन गई हम से वो जियाली हँसी लब खुले जिस्म मुस्कुराने लगा फूल का खिलना था कि डाली हँसी...

ज़र्रों में कुनमुनाती हुई काएनात हूँ जो मुंतज़िर है जिस्मों की मैं वो हयात हूँ दोनों को प्यासा मार रहा है कोई यज़ीद ये ज़िंदगी हुसैन है और मैं फ़ुरात हूँ...

उस ने छू कर मुझे पत्थर से फिर इंसान किया मुद्दतों बअ'द मिरी आँखों में आँसू आए...

उसे पाक नज़रों से चूमना भी इबादतों में शुमार है कोई फूल लाख क़रीब हो कभी मैं ने उस को छुआ नहीं...

उस की आँखों को ग़ौर से देखो मंदिरों में चराग़ जलते हैं...

वो शख़्स जिस को दिल ओ जाँ से बढ़ के चाहा था बिछड़ गया तो ब-ज़ाहिर कोई मलाल नहीं...

वो चेहरा किताबी रहा सामने बड़ी ख़ूबसूरत पढ़ाई हुई...

यारो नए मौसम ने ये एहसान किए हैं अब याद मुझे दर्द पुराने नहीं आते...