बे-तहाशा सी ला-उबाली हँसी
बे-तहाशा सी ला-उबाली हँसी छिन गई हम से वो जियाली हँसी लब खुले जिस्म मुस्कुराने लगा फूल का खिलना था कि डाली हँसी मुस्कुराई ख़ुदा की मह्विय्यत या हमारी ही बे-ख़याली हँसी कौन बे-दर्द छीन लेता है मेरे फूलों की भोली-भाली हँसी वो नहीं था वहाँ तो कौन था फिर सब्ज़ पत्तों में कैसे लाली हँसी धूप में खेत गुनगुनाने लगे जब कोई गाँव की जियाली हँसी हँस पड़ी शाम की उदास फ़ज़ा इस तरह चाय की प्याली हँसी मैं कहीं जाऊँ है तआक़ुब में उस की वो जान लेने वाली हँसी

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