बड़े ताजिरों की सताई हुई
बड़े ताजिरों की सताई हुई ये दुनिया दुल्हन है जलाई हुई भरी दोपहर का खिला फूल है पसीने में लड़की नहाई हुई किरन फूल की पत्तियों में दबी हँसी उस के होंटों पे आई हुई वो चेहरा किताबी रहा सामने बड़ी ख़ूबसूरत पढ़ाई हुई उदासी बिछी है बड़ी दूर तक बहारों की बेटी पराई हुई ख़ुशी हम ग़रीबों की क्या है मियाँ मज़ारों पे चादर चढ़ाई हुई

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