Page 16 of 16

ओ मूर्ति! वासनाओं के विलय अदम आकांक्षा के विश्राम। वस्तु-तत्त्व के बन्धन से छुटकारे के...

बेल-सी वह मेरे भीतर उगी है, बढ़ती है। उस की कलियाँ हैं मेरी आँखें, कोंपलें मेरी अँगुलियों में अँकुराती हैं; फूल-अरे, यह दिल में क्या खिलता है!...

यह जो दिया लिये तुम चले खोजने सत्य, बताओ क्या प्रबन्ध कर चले कि जिस बाती का तुम्हें भरोसा वही जलेगी सदा...

हर किसी के भीतर एक गीत सोता है जो इसी का प्रतीक्षमान होता है कि कोई उसे छू कर जगा दे...

अल्ला रे अल्ला होता न मनुष्य मैं, होता करमकल्ला। रूखे कर्म जीवन से उलझता न पल्ला। चाहता न नाम कुछ, माँगता न दाम कुछ...