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मेरी बच्ची मैं आऊँ न आऊँ आने वाला ज़माना है तेरा तेरे नन्हे से दिल को दुखों ने मैं ने माना कि है आज घेरा...

ये कह रहा है दिल-ए-बे-क़रार तेज़ चलो बहुत उदास हैं ज़ंजीर ओ दार तेज़ चलो जो थक गए हैं उन्हें गर्द-ए-राह रहने दो किसी का अब न करो इंतिज़ार तेज़ चलो...

जागने वालो ता-ब-सहर ख़ामोश रहो कल क्या होगा किस को ख़बर ख़ामोश रहो किस ने सहर के पाँव में ज़ंजीरें डालीं हो जाएगी रात बसर ख़ामोश रहो...

ये और बात तेरी गली में न आएँ हम लेकिन ये क्या कि शहर तिरा छोड़ जाएँ हम...

लोग डरते हैं दुश्मनी से तिरी हम तिरी दोस्ती से डरते हैं...

तुम्हें तो नाज़ बहुत दोस्तों पे था 'जालिब' अलग-थलग से हो क्या बात हो गई प्यारे...

ये और बात तेरी गली में न आएँ हम लेकिन ये क्या कि शहर तिरा छोड़ जाएँ हम मुद्दत हुई है कू-ए-बुताँ की तरफ़ गए आवारगी से दिल को कहाँ तक बचाएँ हम...

कुछ लोग ख़यालों से चले जाएँ तो सोएँ बीते हुए दिन रात न याद आएँ तो सोएँ...

ख़ुदा तुम्हारा नहीं है ख़ुदा हमारा है उसे ज़मीन पे ये ज़ुल्म कब गवारा है लहू पियोगे कहाँ तक हमारा धनवानो बढ़ाओ अपनी दुकाँ सीम-ओ-ज़र के दीवानो...

जीवन मुझ से मैं जीवन से शरमाता हूँ मुझ से आगे जाने वालो में आता हूँ जिन की यादों से रौशन हैं मेरी आँखें दिल कहता है उन को भी मैं याद आता हूँ...

ये उजड़े बाग़ वीराने पुराने सुनाते हैं कुछ अफ़्साने पुराने इक आह-ए-सर्द बन कर रह गए हैं वो बीते दिन वो याराने पुराने...

उस गली के लोगों को मुँह लगा के पछताए एक दर्द की ख़ातिर कितने दर्द अपनाए थक के सो गया सूरज शाम के धुँदलकों में आज भी कई ग़ुंचे फूल बन के मुरझाए...

हम आवारा गाँव गाँव बस्ती बस्ती फिरने वाले हम से प्रीत बढ़ा कर कोई मुफ़्त में क्यूँ ग़म को अपना ले ये भीगी भीगी बरसातें ये महताब ये रौशन रातें दिल ही न हो तो झूटी बातें क्या अँधियारे क्या उजियाले...

ये और बात तेरी गली में न आएँ हम लेकिन ये क्या कि शहर तिरा छोड़ जाएँ हम...

अब तेरी ज़रूरत भी बहुत कम है मिरी जाँ अब शौक़ का कुछ और ही आलम है मिरी जाँ अब तज़्किरा-ए-ख़ंदा-ए-गुल बार है जी पर जाँ वक़्फ़-ए-ग़म-ए-गिर्या-ए-शबनम है मिरी जाँ...

तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था उस को भी अपने ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था कोई ठहरा हो जो लोगों के मुक़ाबिल तो बताओ वो कहाँ हैं कि जिन्हें नाज़ बहुत अपने तईं था...

जो हो न सकी बात वो चेहरों से अयाँ थी हालात का मातम था मुलाक़ात कहाँ थी उस ने न ठहरने दिया पहरों मिरे दिल को जो तेरी निगाहों में शिकायत मिरी जाँ थी...

बाज़ार है वो अब तक जिस में तुझे नचवाया दीवार है वो अब तक जिस में तुझे चुनवाया दीवार को आ तोड़ें बाज़ार को आ ढाएँ इंसाफ़ की ख़ातिर हम सड़कों पे निकल आएँ...

कहीं आह बन के लब पर तिरा नाम आ न जाए तुझे बेवफ़ा कहूँ मैं वो मक़ाम आ न जाए ज़रा ज़ुल्फ़ को सँभालो मिरा दिल धड़क रहा है कोई और ताइर-ए-दिल तह-ए-दाम आ न जाए...

लाख कहते रहें ज़ुल्मत को न ज़ुल्मत लिखना हम ने सीखा नहीं प्यारे ब-इजाज़त लिखना...

न डगमगाए कभी हम वफ़ा के रस्ते में चराग़ हम ने जलाए हवा के रस्ते में किसे लगाए गले और कहाँ कहाँ ठहरे हज़ार ग़ुंचा-ओ-गुल हैं सबा के रस्ते में...

तिरे माथे पे जब तक बल रहा है उजाला आँख से ओझल रहा है समाते क्या नज़र में चाँद तारे तसव्वुर में तिरा आँचल रहा है...

लायल-पूर इक शहर है जिस में दिल है मिरा आबाद धड़कन धड़कन साथ रहेगी उस बस्ती की याद मीठे बोलों की वो नगरी गीतों का संसार हँसते-बसते हाए वो रस्ते नग़्मा-रेज़ दयार...

ऐ जहाँ देख ले कब से बे-घर हैं हम अब निकल आए हैं ले के अपना अलम ये महल्लात ये ऊँचे ऊँचे मकाँ इन की बुनियाद में है हमारा लहू...

एक औरत जो मेरे लिए मुद्दतों शम्अ की तरह आँसू बहाती रही मेरी ख़ातिर ज़माने से मुँह मोड़ कर मेरे ही प्यार के गीत गाती रही...

बातें तो कुछ ऐसी हैं कि ख़ुद से भी न की जाएँ सोचा है ख़मोशी से हर इक ज़हर को पी जाएँ अपना तो नहीं कोई वहाँ पूछने वाला उस बज़्म में जाना है जिन्हें अब तो वही जाएँ...

कौन बताए कौन सुझाए कौन से देस सिधार गए उन का रस्ता तकते तकते नैन हमारे हार गए काँटों के दुख सहने में तस्कीन भी थी आराम भी था हँसने वाले भोले-भाले फूल चमन के मार गए...

दुश्मनों ने जो दुश्मनी की है दोस्तों ने भी क्या कमी की है ख़ामुशी पर हैं लोग ज़ेर-ए-इताब और हम ने तो बात भी की है...

तू कि ना-वाक़िफ़-ए-आदाब-ए-शहंशाही थी रक़्स ज़ंजीर पहन कर भी किया जाता है तुझ को इंकार की जुरअत जो हुई तो क्यूँकर साया-ए-शाह में इस तरह जिया जाता है...

ज़र्रे ही सही कोह से टकरा तो गए हम दिल ले के सर-ए-अर्सा-ए-ग़म आ तो गए हम अब नाम रहे या न रहे इश्क़ में अपना रूदाद-ए-वफ़ा दार पे दोहरा तो गए हम...

जब देखो तो पास खड़ी है नन्ही जा सो जा तुझे बुलाती है सपनों की नगरी जा सो जा ग़ुस्से से क्यूँ घूर रही है मैं आ जाऊँगा कह जो दिया है तेरे लिए इक गुड़िया लाऊँगा...

क़ौम की बेहतरी का छोड़ ख़याल फ़िक्र-ए-तामीर-ए-मुल्क दिल से निकाल तेरा परचम है तेरा दस्त-ए-सवाल बे-ज़मीरी का और क्या हो मआल...

क्या क्या लोग गुज़र जाते हैं रंग-बिरंगी कारों में दिल को थाम के रह जाते हैं दिल वाले बाज़ारों में ये बे-दर्द ज़माना हम से तेरा दर्द न छीन सका हम ने दिल की बात कही है तीरों में तलवारों में...

जिन की ख़ातिर शहर भी छोड़ा जिन के लिए बदनाम हुए आज वही हम से बेगाने बेगाने से रहते हैं...

उस सितमगर की हक़ीक़त हम पे ज़ाहिर हो गई ख़त्म ख़ुश-फ़हमी की मंज़िल का सफ़र भी हो गया...

आने वाली बरखा देखें क्या दिखलाए आँखों को ये बरखा बरसाते दिन तो बिन प्रीतम बे-कार गए...

इक तिरी याद से इक तेरे तसव्वुर से हमें आ गए याद कई नाम हसीनाओं के...

एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्ज़ाम नहीं दुनिया वाले दिल वालों को और बहुत कुछ कहते हैं...

मैं ने उस से ये कहा ये जो दस करोड़ हैं जहल का निचोड़ हैं उन की फ़िक्र सो गई...

हम ने सुना था सहन-ए-चमन में कैफ़ के बादल छाए हैं हम भी गए थे जी बहलाने अश्क बहा कर आए हैं फूल खिले तो दिल मुरझाए शम्अ' जले तो जान जले एक तुम्हारा ग़म अपना कर कितने ग़म अपनाए हैं...