Habib Jalib
( 1928 - 1993 )

Habib Jalib (Hindi: हबीब जालिब) was a Pakistani revolutionary poet, left-wing activist and politician who opposed martial law, authoritarianism and state oppression. Pakistani poet Faiz Ahmed Faiz paid tributes to him by saying that he was truly the poet of the masses. More

ग़ज़लें तो कही हैं कुछ हम ने उन से न कहा अहवाल तो क्या कल मिस्ल-ए-सितारा उभरेंगे हैं आज अगर पामाल तो क्या जीने की दुआ देने वाले ये राज़ तुझे मालूम नहीं तख़्लीक़ का इक लम्हा है बहुत बे-कार जिए सौ साल तो क्या ...

तेरी आँखों का अजब तुर्फ़ा समाँ देखा है एक आलम तिरी जानिब निगराँ देखा है कितने अनवार सिमट आए हैं इन आँखों में इक तबस्सुम तिरे होंटों पे रवाँ देखा है ...

न तेरी याद न दुनिया का ग़म न अपना ख़याल अजीब सूरत-ए-हालात हो गई प्यारे ...

लायल-पूर इक शहर है जिस में दिल है मिरा आबाद धड़कन धड़कन साथ रहेगी उस बस्ती की याद मीठे बोलों की वो नगरी गीतों का संसार हँसते-बसते हाए वो रस्ते नग़्मा-रेज़ दयार...

बहुत मैं ने सुनी है आप की तक़रीर मौलाना मगर बदली नहीं अब तक मिरी तक़दीर मौलाना ख़ुदारा शुक्र की तल्क़ीन अपने पास ही रक्खें ये लगती है मिरे सीने पे बन कर तीर मौलाना...

आख़िर-ए-कार ये साअ'त भी क़रीब आ पहुँची तू मिरी जान किसी और की हो जाएगी कल तलक मेरा मुक़द्दर थी तिरी ज़ुल्फ़ की शाम क्या तग़य्युर है कि तू ग़ैर की कहलाएगी...

जो हो न सकी बात वो चेहरों से अयाँ थी हालात का मातम था मुलाक़ात कहाँ थी उस ने न ठहरने दिया पहरों मिरे दिल को जो तेरी निगाहों में शिकायत मिरी जाँ थी...

गीत क्या क्या लिख गया क्या क्या फ़साने कह गया नाम यूँही तो नहीं उस का अदब में रह गया एक तन्हाई रही उस की अनीस-ए-ज़िंदगी कौन जाने कैसे कैसे दुख वो तन्हा सह गया...

मेरी बच्ची मैं आऊँ न आऊँ आने वाला ज़माना है तेरा तेरे नन्हे से दिल को दुखों ने मैं ने माना कि है आज घेरा...

मैं ने उस से ये कहा ये जो दस करोड़ हैं जहल का निचोड़ हैं उन की फ़िक्र सो गई...