मुक्तिकामी चेतना, अभ्यर्थना इतिहास की, ये समझदारों की दुनिया है विरोधाभास की। आप कहते हैं जिसे इस देश का स्वर्णिम अतीत, वो कहानी है महज़ प्रतिशोध की, संत्रास की।...
आँख पर पट्टी रहे और अक़्ल पर ताला रहे अपने शाहे-वक़्त का यूँ मर्तबा आला रहे तालिबे शोहरत हैं कैसे भी मिले मिलती रहे आए दिन अख़बार में प्रतिभूति घोटाला रहे...
विकट बाढ़ की करुण कहानी नदियों का संन्यास लिखा है बूढ़े बरगद के वल्कल पर सदियों का इतिहास लिखा है क्रूर नियति ने इसकी किस्मत से कैसा खिलवाड़ किया है मन के पृष्ठों पर शाकुंतल अधरों पर संत्रास लिखा है...
जुल्फ - अंगडाई - तबस्सुम - चाँद - आईना - गुलाब भुखमरी के मोर्चे पर ढल गया इनका शबाब पेट के भूगोल में उलझा हुआ है आदमी इस अहद में किसको फुर्सत है पढ़े दिल की किताब ...
घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है बताओ कैसे लिख दूँ धूप फागुन की नशीली है भटकती है हमारे गाँव में गूँगी भिखारन-सी सुबह से फरवरी बीमार पत्नी से भी पीली है...
आप कहते हैं सरापा गुलमुहर है ज़िंदगी हम ग़रीबों की नज़र में इक क़हर है ज़िंदगी भुखमरी की धूप में कुम्हला गई अस्मत की बेल मौत के लमहात से भी तल्ख़तर है ज़िंदगी ...
चाँद है ज़ेरे क़दम सूरज खिलौना हो गया हाँ, मगर इस दौर में क़िरदार बौना हो गया शहर के दंगों में जब भी मुफलिसों के घर जले कोठियों की लॉन का मंज़र सलौना हो गया...
काजू भुने पलेट में विस्की गिलास में उतरा है रामराज विधायक निवास में पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत इतना असर है खादी के उजले लिबास में...
ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में मुसल्सल फ़न का दम घुटता है इन अदबी इदारों में न इन में वो कशिश होगी, न बू होगी, न रआनाई खिलेंगे फूल बेशक लॉन की लम्बी कतारों में...
ये महाभारत है जिसके पात्र सारे आ गए, योगगुरू भागे तो फिर अन्ना हजारे आ गए। ठाकरे जो भी कहे वो बालीबुड दोहराएगा, इसलिए पण्डाल में फ़िल्मी सितारे आ गए।...
वेद में जिनका हवाला हाशिये पर भी नहीं वे अभागे आस्था विश्वास लेकर क्या करें लोकरंजन हो जहां शम्बूक-वध की आड़ में उस व्यवस्था का घृणित इतिहास लेकर क्या करें ...
हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िए ग़र ग़लतियाँ बाबर की थीं; जुम्मन का घर फिर क्यों जले ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए...
आइए महसूस करिए ज़िन्दगी के ताप को मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको जिस गली में भुखमरी की यातना से ऊब कर मर गई फुलिया बिचारी एक कुएँ में डूब कर...
बज़ाहिर प्यार की दुनिया में जो नाकाम होता है कोई रूसो कोई हिटलर कोई खय्याम होता है ज़हर देते हैं उसको हम कि ले जाते हैं सूली पर यही हर दौर के मंसूर का अंजाम होता है...
जिसके सम्मोहन में पाग़ल, धरती है, आकाश भी है, एक पहेली-सी ये दुनिया, गल्प भी है, इतिहास भी है। चिन्तन के सोपान पर चढ़कर चाँद-सितारे छू आए, लेकिन मन की गहराई में माटी की बू-बास भी है।...
जो उलझ कर रह गई है फाइलों के जाल में गाँव तक वो रोशनी आएगी कितने साल में बूढ़ा बरगद साक्षी है किस तरह से खो गई रमसुधी की झोपड़ी सरपंच की चौपाल में...
टी०वी० से अख़बार तक ग़र सेक्स की बौछार हो, फिर बताओ कैसे अपनी सोच का विस्तार हो। बह गए कितने सिकन्दर वक़्त के सैलाब में, अक़्ल इस कच्चे घड़े से कैसे दरिया पार हो।...
वेद में जिनका हवाला हाशिए पर भी नहीं वे अभागे आस्था विश्वास ले कर क्या करें लोकरंजन हो जहाँ शंबूक-वध की आड़ में उस व्यवस्था का घृणित इतिहास ले कर क्या करें...