जिसके सम्मोहन में पाग़ल, धरती है, आकाश भी है
जिसके सम्मोहन में पाग़ल, धरती है, आकाश भी है, एक पहेली-सी ये दुनिया, गल्प भी है, इतिहास भी है। चिन्तन के सोपान पर चढ़कर चाँद-सितारे छू आए, लेकिन मन की गहराई में माटी की बू-बास भी है। मानव-मन के द्वन्द्व को आख़िर किस साँचे में ढालोगे, महारास की पृष्ठभूमि में 'ओशो' का संन्यास भी है। अमृत की बूँदें बरसी थीं तब हमने मुँह फेर लिया, आज ख़ुशी से ज़हर पी रहे और इसका एहसास भी है। इन्द्रधनुष के पुल से गुज़रकर उस बस्ती तक आए हैं, जहाँ भूख की धूप सलोनी चंचल है बिन्दास भी है। कंक्रीट के इस जंगल में फूल खिले पर गन्ध नहीं, स्मृतियों की घाटी में यूँ कहने को मधुमास भी है।

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