टी०वी० से अख़बार तक ग़र सेक्स की बौछार हो
टी०वी० से अख़बार तक ग़र सेक्स की बौछार हो, फिर बताओ कैसे अपनी सोच का विस्तार हो। बह गए कितने सिकन्दर वक़्त के सैलाब में, अक़्ल इस कच्चे घड़े से कैसे दरिया पार हो। सभ्यता ने मौत से डर कर उठाए हैं क़दम, ताज की कारीगरी या चीन की दीवार हो। मेरी ख़ुद्दारी ने अपना सर झुकाया दो जगह, वो कोई मज़लूम हो या साहिबे-किरदार हो। एक सपना है जिसे साकार करना है तुम्हें, झोपड़ी से राजपथ का रास्ता हमवार हो।

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