हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िए ग़र ग़लतियाँ बाबर की थीं; जुम्मन का घर फिर क्यों जले ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ मिट गए सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िए छेड़िए इक जंग, मिल-जुल कर ग़रीबी के ख़िलाफ़ दोस्त, मेरे मज़हबी नग्मात को मत छेड़िए

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