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शुक्र वो जान गई, फिर आई ऐश की आन गई, फिर आई तेरे आने सिती ऐ राहत-ए-जाँ शहर की जान गई, फिर आई...

तुझ मुख का यो तिल देखकर लाले का दिल काला हुआ तुझ दौर-ए-ख़त सों तौक़ ज्‍यूँ महताब पर हाला हुआ मस्‍ती मनीं महशर तलक कौनैन को बिसरा है वो जो तुझ नयन के जाम सों मद पी के मतवाला हुआ...

दिल कूँ तुझ बाज बे-क़रारी है चश्म का काम अश्क-बारी है शब-ए-फ़ुर्क़त में मोनिस ओ हम-दम बे-क़रारों कूँ आह ओ ज़ारी है...

हुस्‍न तेरा सुर्ज पे फ़ाजि़ल है मुख तिरा रश्‍क-ए-मात-ए-कामिल है हुस्‍न के दर्स में लिया जो सबक़ मुझ नजिक फ़ाजिल-ओ-मुकम्मिल है...

इश्क़ में सब्र ओ रज़ा दरकार है फ़िक्र-ए-असबाब-ए-वफ़ा दरकार है चाक करने जामा-ए-सब्र-ओ-क़रार दिल-बर-ए-रंगीं क़बा दरकार है...

मैं आशिक़ी में तब सूँ अफ़साना हो रहा हूँ तेरी निगह का जब सूँ दीवाना हो रहा हूँ ऐ आशना करम सूँ यक बार आ दरस दे तुझ बाज सब जहाँ सूँ बे-गाना हो रहा हूँ...