हुस्न तेरा सुर्ज पे फ़ाजि़ल है
हुस्‍न तेरा सुर्ज पे फ़ाजि़ल है मुख तिरा रश्‍क-ए-मात-ए-कामिल है हुस्‍न के दर्स में लिया जो सबक़ मुझ नजिक फ़ाजिल-ओ-मुकम्मिल है रात-दिन तुझ जमाल-ए-रौशन सूँ फ़ज़्ल-ए-परवरदिगार शामिल है जिसकूँ तुझ हुस्‍न की नईं है ख़बर बेगुमाँ वो जहाँ में ग़ाफि़ल है ज़ाद-ए-रह दिल सूँ जो बग़ल में लिया इश्‍क़ के पंथ में वो आकि़ल है इश्‍क़ की राह के मुसाफि़र कूँ हर क़दम तुझ गली में मंजि़ल है ऐ 'वली' तर्ज़-ए-इश्‍क़ आसाँ नहीं आज़माया हूँ मैं कि मुश्किल है

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