मैं आशिक़ी में तब सूँ अफ़साना हो रहा हूँ
मैं आशिक़ी में तब सूँ अफ़साना हो रहा हूँ तेरी निगह का जब सूँ दीवाना हो रहा हूँ ऐ आशना करम सूँ यक बार आ दरस दे तुझ बाज सब जहाँ सूँ बे-गाना हो रहा हूँ बाताँ लगन की मत पूछ ऐ शम्मा-ए-बज़्म-ए-ख़ूबी मुद्दत से तुझ झलक का परवाना हो रहा हूँ शायद वो गंज-ए-ख़ूबी आवे किसी तरफ़ सूँ इस वास्ते सरापा वीराना हो रहा हूँ सौदा-ए-ज़ुल्फ़-ए-ख़ूबाँ रखता हूँ दिल में दाइम ज़ंजीर-ए-आशिक़ी का दीवाना हो रहा हूँ बर-जा है गर सुनूँ नईं नासेह तेरी नसीहत मैं जाम-ए-इश्क़ पी कर मस्ताना हो रहा हूँ किस सूँ ‘वली’ आपस का अहवाल जा कहूँ मैं सर ता क़दम मैं ग़म सूँ ग़म-ख़ाना हो रहा हूँ

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