Josh Malihabadi
( 1898 - 1982 )

Josh Malihabadi (Hindi: जोश मलिहाबादी), born as Shabbir Hasan Khan was a Pakistani poet. He was an Indian citizen until 1958, when he emigrated to Pakistan and became a Pakistani citizen. He wrote ghazals, nazm and Marsias under the takhallus Josh. More

इबादत करते हैं जो लोग जन्नत की तमन्ना में इबादत तो नहीं है इक तरह की वो तिजारत है जो डर के नार-ए-दोज़ख़ से ख़ुदा का नाम लेते हैं इबादत क्या वो ख़ाली बुज़दिलाना एक ख़िदमत है ...

ख़ुशियाँ मनाने पर भी है मजबूर आदमी आँसू बहाने पर भी है मजबूर आदमी और मुस्‍कराने पर भी है मजबूर आदमी दुनिया में आने पर भी है मजबूर आदमी...

सोज़े-ग़म देके उसने ये इरशाद किया जा तुझे कश्मकश-ए-दहर से आज़ाद किया वो करें भी तो किन अल्फ़ाज में तिरा शिकवा जिनको तिरी निगाह-ए-लुत्फ़ ने बर्बाद किया...

बादबाँ नाज़ से लहरा के चली बाद-ए-मुराद कारवाँ ईद मना क़ाफ़िला-सालार आया...

जब से मरने की जी में ठानी है किस क़दर हम को शादमानी है शाइरी क्यूँ न रास आए मुझे ये मिरा फ़न्न-ए-ख़ानदानी है...

क्या ग़ज़ब है हुस्न के बीमार होने की सदा जैसे कच्ची नींद से बेदार होने की अदा इंकिसार-ए-हुस्न पलकों के झपकने में निहाँ नीम-वा बीमार आँखों से मुरव्वत सी अयाँ...

छा गई बरसात की पहली घटा अब क्या करूँ ख़ौफ़ था जिस का वो आ पहुँची बला अब क्या करूँ हिज्र को बहला चली थी गर्म मौसम की सुमूम ना-गहाँ चलने लगी ठंडी हवा अब क्या करूँ...

ख़ामोशी का समाँ है और मैं हूँ दयार-ए-ख़ुफ़्तगाँ है और मैं हूँ कभी ख़ुद को भी इंसाँ काश समझे ये सई-ए-रायगाँ है और मैं हूँ ...

अलस्सबाह कि थी काएनात सर-ब-सुजूद फ़लक पे शोर-ए-अज़ाँ था ज़मीं पे बाँग-ए-दुरूद बहार शबनम-आसूदा थी कि रूह-ए-ख़लील फ़रोग़-ए-लाला-ओ-गुल था कि आतिश-ए-नमरूद...

शश-जिहत आप को आएँगे नज़र दो-बटा-तीन छे-बटा-नौ के बराबर है अगर दो-बटा-तीन दो खिलौने जो कभी हम ने तिपाई पे धरे आ गए साफ़ मुहंदिस को नज़र दो-बटा-तीन...