ख़ामोशी का समाँ है और मैं हूँ
ख़ामोशी का समाँ है और मैं हूँ दयार-ए-ख़ुफ़्तगाँ है और मैं हूँ कभी ख़ुद को भी इंसाँ काश समझे ये सई-ए-रायगाँ है और मैं हूँ कहूँ किस से कि इस जमहूरियत में हुजूम-ए-ख़सरवाँ है और मैं हूँ पड़ा हूँ इस तरफ़ धूनी रमाये अताब-ए-रहरवाँ है और मैं हूँ कहाँ है हम-ज़बाँ अल्लाह जाने फ़क़त मेरी ज़बाँ है और मैं हूँ ख़ामोशी है ज़मीं से आस्माँ तक किसी की दास्ताँ है और मैं हूँ क़यामत है ख़ुद अपने आशियाँ में तलाश-ए-आशियाँ है और मैं हूँ जहाँ एक जुर्म है याद-ए-बहाराँ वो लाफ़ानी-ख़िज़ाँ है और मैं हूँ तरसती हैं ख़रीददारों की आँखें जवाहिर की दुकाँ है और मैं हूँ नहीं आती अब आवाज़-ए-जरस भी ग़ुबार-ए-कारवाँ है और मैं हूँ म'अल-ए-बंदगी ऐ "जोश" तौबा ख़ुदा-ए-मेहरबाँ है और मैं हूँ

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