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सब दुखहरन सुखकर परम हे नीम! जब देखूँ तुझे। तुहि जानकर अति लाभकारी हर्ष होता है मुझे॥ ये लहलही पत्तियाँ हरी, शीतल पवन बरसा रहीं। निज मंद मीठी वायु से सब जीव को हरषा रहीं॥...

क्या कहते हो? किसी तरह भी भूलूँ और भुलाने दूँ? गत जीवन को तरल मेघ-सा स्मृति-नभ में मिट जाने दूँ?...

सोया था संयोग उसे किस लिए जगाने आए हो? क्या मेरे अधीर यौवन की प्यास बुझाने आए हो??...

इस समाधि में छिपी हुई है, एक राख की ढेरी। जल कर जिसने स्वतंत्रता की, दिव्य आरती फेरी॥ यह समाधि यह लघु समाधि है, झाँसी की रानी की। अंतिम लीलास्थली यही है, लक्ष्मी मरदानी की॥...

मृदुल कल्पना के चल पँखों पर हम तुम दोनों आसीन। भूल जगत के कोलाहल को रच लें अपनी सृष्टि नवीन॥ वितत विजन के शांत प्रांत में कल्लोलिनी नदी के तीर। बनी हुई हो वहीं कहीं पर हम दोनों की पर्ण-कुटीर॥ ...

यह मेरी गोदी की शोभा, सुख सोहाग की है लाली। शाही शान भिखारन की है, मनोकामना मतवाली। दीप-शिखा है अँधेरे की, घनी घटा की उजियाली। उषा है यह काल-भृंग की, है पतझर की हरियाली।...

मैं अछूत हूँ, मंदिर में आने का मुझको अधिकार नहीं है। किंतु देवता यह न समझना, तुम पर मेरा प्यार नहीं है॥ प्यार असीम, अमिट है, फिर भी पास तुम्हारे आ न सकूँगी। यह अपनी छोटी सी पूजा, चरणों तक पहुँचा न सकूँगी॥...

शैशव के सुन्दर प्रभात का मैंने नव विकास देखा। यौवन की मादक लाली में जीवन का हुलास देखा॥...

तुम कहते हो - मुझको इसका रोना नहीं सुहाता है। मैं कहती हूँ - इस रोने से अनुपम सुख छा जाता है॥ सच कहती हूँ, इस रोने की छवि को जरा निहारोगे। बड़ी-बड़ी आँसू की बूँदों पर मुक्तावली वारोगे॥...

कर रहे प्रतीक्षा किसकी हैं झिलमिल-झिलमिल तारे? धीमे प्रकाश में कैसे तुम चमक रहे मन मारे॥...

रीती होती जाती थी जीवन की मधुमय प्याली। फीकी पड़ती जाती थी मेरे यौवन की लाली॥...

जब अंतस्तल रोता है, कैसे कुछ तुम्हें सुनाऊँ? इन टूटे से तारों पर, मैं कौन तराना गाऊँ??...

बिछा प्रतीक्षा-पथ पर चिंतित नयनों के मदु मुक्ता-जाल। उनमें जाने कितनी ही अभिलाषाओं के पल्लव पाल॥...

तू गरजा, गरज भयंकर थी, कुछ नहीं सुनाई देता था। घनघोर घटाएं काली थीं, पथ नहीं दिखाई देता था॥...

विफल प्रयत्न हुए सारे, मैं हारी, निष्ठुरता जीती। अरे न पूछो, कह न सकूँगी, तुमसे मैं अपनी बीती॥...

बहुत दिनों तक हुई परीक्षा अब रूखा व्यवहार न हो। अजी, बोल तो लिया करो तुम चाहे मुझ पर प्यार न हो॥...

जब मैं आँगन में पहुँची, पूजा का थाल सजाए। शिवजी की तरह दिखे वे, बैठे थे ध्यान लगाए॥...

अपने बिखरे भावों का मैं गूँथ अटपटा सा यह हार। चली चढ़ाने उन चरणों पर, अपने हिय का संचित प्यार॥...

इस तरह उपेक्षा मेरी, क्यों करते हो मतवाले! आशा के कितने अंकुर, मैंने हैं उर में पाले॥...

लगे आने, हृदय धन से कहा मैंने कि मत आओ। कहीं हो प्रेम में पागल न पथ में ही मचल जाओ॥...

प्रथम जब उनके दर्शन हुए, हठीली आँखें अड़ ही गईं। बिना परिचय के एकाएक हृदय में उलझन पड़ ही गई॥...

क्या कहते हो कुछ लिख दूँ मैं ललित-कलित कविताएं। चाहो तो चित्रित कर दूँ जीवन की करुण कथाएं॥...

मेरे भोले मूर्ख हृदय ने कभी न इस पर किया विचार। विधि ने लिखी भाल पर मेरे सुख की घड़ियाँ दो ही चार॥...

सूखी सी अधखिली कली है परिमल नहीं, पराग नहीं। किंतु कुटिल भौंरों के चुंबन का है इन पर दाग नहीं॥...

डाल पर के मुरझाए फूल! हृदय में मत कर वृथा गुमान। नहीं है सुमन कुंज में अभी इसी से है तेरा सम्मान॥...

मैंने हँसना सीखा है मैं नहीं जानती रोना; बरसा करता पल-पल पर मेरे जीवन में सोना।...

कृष्ण-मंदिर में प्यारे बंधु पधारो निर्भयता के साथ। तुम्हारे मस्तक पर हो सदा कृष्ण का वह शुभचिंतक हाथ॥...

सभा सभा का खेल आज हम खेलेंगे जीजी आओ, मैं गाधी जी, छोटे नेहरू तुम सरोजिनी बन जाओ।...

निर्धन हों धनवान, परिश्रम उनका धन हो। निर्बल हों बलवान, सत्यमय उनका मन हो॥ हों स्वाधीन गुलाम, हृदय में अपनापन हो। इसी आन पर कर्मवीर तेरा जीवन हो॥...

दिन में प्रचंड रवि-किरणें मुझको शीतल कर जातीं। पर मधुर ज्योत्स्ना तेरी, हे शशि! है मुझे जलाती॥...

जब तक मैं मैं हूँ, तुम तुम हो, है जीवन में जीवन। कोई नहीं छीन सकता तुमको मुझसे मेरे धन॥...

यह मुरझाया हुआ फूल है, इसका हृदय दुखाना मत। स्वयं बिखरने वाली इसकी पंखड़ियाँ बिखराना मत॥...

तुम मुझे पूछते हो ’जाऊँ’? मैं क्या जवाब दूँ, तुम्हीं कहो! ’जा...’ कहते रुकती है जबान किस मुँह से तुमसे कहूँ ’रहो’!!...

कड़ी आराधना करके बुलाया था उन्हें मैंने। पदों को पूजने के ही लिए थी साधना मेरी॥ तपस्या नेम व्रत करके रिझाया था उन्हें मैंने। पधारे देव, पूरी हो गई आराधना मेरी॥...

हठीले मेरे भोले पथिक! किधर जाते हो आकस्मात। अरे क्षण भर रुक जाओ यहाँ, सोच तो लो आगे की बात॥...

देव! तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते हैं सेवा में बहुमूल्य भेंट वे कई रंग की लाते हैं धूमधाम से साज-बाज से वे मंदिर में आते हैं मुक्तामणि बहुमुल्य वस्तुऐं लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं ...

देखो कोयल काली है पर मीठी है इसकी बोली इसने ही तो कूक कूक कर आमों में मिश्री घोली...

अभी अभी थी धूप, बरसने लगा कहाँ से यह पानी किसने फोड़ घड़े बादल के की है इतनी शैतानी।...

वह देखो माँ आज खिलौनेवाला फिर से आया है। कई तरह के सुंदर-सुंदर नए खिलौने लाया है।...

आ रही हिमालय से पुकार है उदधि गरजता बार बार प्राची पश्चिम भू नभ अपार; सब पूछ रहें हैं दिग-दिगन्त...