गुज़र रहे हैं शब ओ रोज़ तुम नहीं आतीं रियाज़-ए-ज़ीस्त है आज़ुरदा-ए-बहार अभी मिरे ख़याल की दुनिया है सोगवार अभी जो हसरतें तिरे ग़म की कफ़ील हैं प्यारी...
रह-ए-ख़िज़ाँ में तलाश-ए-बहार करते रहे शब-ए-सियह से तलब हुस्न-ए-यार करते रहे ख़याल-ए-यार कभी ज़िक्र-ए-यार करते रहे इसी मताअ पे हम रोज़गार करते रहे...
मिरी जान आज का ग़म न कर कि न जाने कातिब-ए-वक़्त ने किसी अपने कल में भी भूल कर कहीं लिख रखी हों मसर्रतें...
हम क्या करते किस रह चलते हर राह में काँटे बिखरे थे इन रिश्तों के जो छूट गए इन सदियों के यारानों के...
आज फिर दर्द-ओ-ग़म के धागे में हम पिरो कर तिरे ख़याल के फूल तर्क-ए-उल्फ़त के दश्त से चुन कर आश्नाई के माह ओ साल के फूल...
ये रात उस दर्द का शजर है जो मुझ से तुझ से अज़ीम-तर है अज़ीम-तर है कि इस की शाख़ों में लाख मिशअल-ब-कफ़ सितारों...
हम कि ठहरे अजनबी इतनी मुदारातों के बा'द फिर बनेंगे आश्ना कितनी मुलाक़ातों के बा'द कब नज़र में आएगी बे-दाग़ सब्ज़े की बहार ख़ून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बा'द...
वो दर खुला मेरे ग़म-कदे का वो आ गए मेरे मिलने वाले वो आ गई शाम अपनी राहों में फ़र्श-ए-अफ़्सुर्दगी बिछाने...
हम सादा ही ऐसे थे की यूँ ही पज़ीराई जिस बार ख़िज़ाँ आई समझे कि बहार आई आशोब-ए-नज़र से की हम ने चमन-आराई जो शय भी नज़र आई गुल-रंग नज़र आई...
दश्त-ए-तन्हाई में ऐ जान-ए-जहाँ लर्ज़ां हैं तेरी आवाज़ के साए तिरे होंटों के सराब दश्त-ए-तन्हाई में दूरी के ख़स ओ ख़ाक तले खिल रहे हैं तिरे पहलू के समन और गुलाब...
रह-गुज़र, साए, शजर, मंज़िल-ओ-दर, हल्का-ए-बाम बाम पर सीना-ए-महताब खुला, आहिस्ता जिस तरह खोले कोई बंद-ए-क़बा, आहिस्ता हल्का-ए-बाम तले, सायों का ठहरा हुआ नील...
वफ़ा-ए-वादा नहीं वादा-ए-दिगर भी नहीं वो मुझ से रूठे तो थे लेकिन इस क़दर भी नहीं बरस रही है हरीम-ए-हवस में दौलत-ए-हुस्न गदा-ए-इश्क़ के कासे में इक नज़र भी नहीं...
कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी कब जान लहू होगी कब अश्क गुहर होगा किस दिन तिरी शुनवाई ऐ दीदा-ए-तर होगी...
बरबत-ए-दिल के तार टूट गए हैं ज़मीं-बोस राहतों के महल मिट गए क़िस्सा-हा-ए-फ़िक्र-ओ-अमल! बज़्म-ए-हस्ती के जाम फूट गए...
आसमाँ आज इक बहर-ए-पुर-शोर है जिस में हर-सू रवाँ बादलों के जहाज़ उन के अर्शे पे किरनों के मस्तूल हैं बादबानों की पहने हुए फ़र्ग़लें...
वहीं हैं दिल के क़राइन तमाम कहते हैं वो इक ख़लिश कि जिसे तेरा नाम कहते हैं तुम आ रहे हो कि बजती हैं मेरी ज़ंजीरें न जाने क्या मिरे दीवार ओ बाम कहते हैं...
सुब्ह की आज जो रंगत है वो पहले तो न थी क्या ख़बर आज ख़िरामाँ सर-ए-गुलज़ार है कौन शाम गुलनार हुई जाती है देखो तो सही ये जो निकला है लिए मिशअल-ए-रुख़्सार है कौन...
तुझ को कितनों का लहू चाहिए ऐ अर्ज़-ए-वतन जो तिरे आरिज़-ए-बे-रंग को गुलनार करें कितनी आहों से कलेजा तिरा ठंडा होगा कितने आँसू तिरे सहराओं को गुलज़ार करें...
आप की याद आती रही रात भर चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर गाह जलती हुई गाह बुझती हुई शम-ए-ग़म झिलमिलाती रही रात भर...
लो तुम भी गए हम ने तो समझा था कि तुम ने बाँधा था कोई यारों से पैमान-ए-वफ़ा और ये अहद कि ता-उम्र रवाँ साथ रहोगे रस्ते में बिछड़ जाएँगे जब अहल-ए-सफ़ा और...
जो फूल सारे गुलिस्ताँ में सब से अच्छा हो फ़रोग़-ए-नूर हो जिस से फ़ज़ा-ए-रंगीं में ख़िज़ाँ के जौर-ओ-सितम को न जिस ने देखा हो बहार ने जिसे ख़ून-ए-जिगर से पाला हो...
गर्मी-ए-शौक़-ए-नज़ारा का असर तो देखो गुल खिले जाते हैं वो साया-ए-तर तो देखो ऐसे नादाँ भी न थे जाँ से गुज़रने वाले नासेहो पंद-गरो राहगुज़र तो देखो...
राज़-ए-उल्फ़त छुपा के देख लिया दिल बहुत कुछ जला के देख लिया और क्या देखने को बाक़ी है आप से दिल लगा के देख लिया...
इधर न देखो कि जो बहादुर क़लम के या तेग़ के धनी थे जो अज़्म-ओ-हिम्मत के मुद्दई थे अब उन के हाथों में सिद्क़-ए-ईमाँ की...
गुलशन-ए-याद में गर आज दम-ए-बाद-ए-सबा फिर से चाहे कि गुल-अफ़शाँ हो तो हो जाने दो उम्र-ए-रफ़्ता के किसी ताक़ पे बिसरा हुआ दर्द फिर से चाहे कि फ़रोज़ाँ हो तो हो जाने दो...
हैराँ है जबीं आज किधर सज्दा रवा है सर पर हैं ख़ुदावंद सर-ए-अर्श ख़ुदा है कब तक इसे सींचोगे तमन्ना-ए-समर में ये सब्र का पौदा तो न फूला न फला है...
सलाम लिखता है शाएर तुम्हारे हुस्न के नाम बिखर गया जो कभी रंग-ए-पैरहन सर-ए-बाम निखर गई है कभी सुब्ह दोपहर कभी शाम कहीं जो क़ामत-ए-ज़ेबा पे सज गई है क़बा...
किस शहर न शोहरा हुआ नादानी-ए-दिल का किस पर न खुला राज़ परेशानी-ए-दिल का आओ करें महफ़िल पे ज़र-ए-ज़ख्म नुमायाँ चर्चा है बहुत बे-सर-ओ-सामानी-ए-दिल का...
नीम-शब चाँद ख़ुद-फ़रामोशी महफ़िल-ए-हस्त-ओ-बूद वीराँ है पैकर-ए-इल्तिजा है ख़ामोशी बज़्म-ए-अंजुम फ़सुर्दा-सामाँ है...
ये जफ़ा-ए-ग़म का चारा वो नजात-ए-दिल का आलम तिरा हुस्न दस्त-ए-ईसा तिरी याद रू-ए-मर्यम दिल ओ जाँ फ़िदा-ए-राहे कभी आ के देख हमदम सर-ए-कू-ए-दिल-फ़िगाराँ शब-ए-आरज़ू का आलम...
सजे तो कैसे सजे क़त्ल-ए-आम का मेला किसे लुभाएगा मेरे लहू का वावैला मिरे नज़ार बदन में लहू ही कितना है चराग़ हो कोई रौशन न कोई जाम भरे...