मोरी अर्ज सुनो
मोरी अर्ज सुनो दस्त-गीर पीर माई री कहूँ कासे मैं अपने जिया की पीर नय्या बाँधो रे बाँधो रे कनार-ए-दरिया मोरे मंदिर अब क्यूँ नहीं आए इस सूरत से अर्ज़ सुनाते दर्द बताते नय्या खेते मिन्नत करते रस्ता तकते कितनी सदियाँ बीत गई हैं अब जा कर ये भेद खुला है जिस को तुम ने अर्ज़ गुज़ारी जो था हाथ पकड़ने वाला जिस जा लागी नाव तुम्हारी जिस से दुख का दारू माँगा तोरे मंदिर में जो नहीं आया वो तो तुम्हीं थे वो तो तुम्हीं थे

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