मेजर-इसहाक़ की याद में
लो तुम भी गए हम ने तो समझा था कि तुम ने बाँधा था कोई यारों से पैमान-ए-वफ़ा और ये अहद कि ता-उम्र रवाँ साथ रहोगे रस्ते में बिछड़ जाएँगे जब अहल-ए-सफ़ा और हम समझे थे सय्याद का तरकश हुआ ख़ाली बाक़ी था मगर उस में अभी तीर-ए-क़ज़ा और हर ख़ार रह-ए-दश्त-ए-वतन का है सवाली कब देखिए आता है कोई आबला-पा और आने में तअम्मुल था अगर रोज़-ए-जज़ा को अच्छा था ठहर जाते अगर तुम भी ज़रा और

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