Faiz Ahmad Faiz
Faiz
( 1911 - 1984 )

Faiz Ahmad Faiz (Hindi: फ़ैज़ अहमद फ़ैज़) was an influential left-wing intellectual, revolutionary poet, and one of the most highly regarded poets of the Urdu language, having been nominated four times for the Nobel Prize for literature. Faiz also wrote poetry in the Punjabi language. A notable member of the Progressive Writers' Movement, Faiz was an avowed Marxist, for which he received the Lenin Peace Prize by the Soviet Union in 1962. More

वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था वो बात उन को बहुत ना-गवार गुज़री है...

याद का फिर कोई दरवाज़ा खुला आख़िर-ए-शब दिल में बिखरी कोई ख़ुशबू-ए-क़बा आख़िर-ए-शब सुब्ह फूटी तो वो पहलू से उठा आख़िर-ए-शब वो जो इक उम्र से आया न गया आख़िर-ए-शब...

मत रो बच्चे रो रो के अभी तेरी अम्मी की आँख लगी है मत रो बच्चे...

कस तरह बयाँ हो तिरा पैराया-ए-तक़रीर गोया सर-ए-बातिल पे चमकने लगी शमशीर वो ज़ोर है इक लफ़्ज़ इधर नुत्क़ से निकला वाँ सीना-ए-अग़्यार में पैवस्त हुए तीर...

छलनी है अँधेरे का सीना, बरखा के भाले बरसे हैं दीवारों के आँसू हैं रवाँ, घर ख़ामोशी में डूबे हैं पानी में नहाए हैं बूटे गलियों में हू का फेरा है...

पेकिंग यूँ गुमाँ होता है बाज़ू हैं मिरे साथ करोड़ और आफ़ाक़ की हद तक मिरे तन की हद है दिल मिरा कोह ओ दमन दश्त ओ चमन की हद है...

ताज़ा हैं अभी याद में ऐ साक़ी-ए-गुलफ़ाम वो अक्स-ए-रुख़-ए-यार से लहके हुए अय्याम वो फूल सी खुलती हुई दीदार की साअत वो दिल सा धड़कता हुआ उम्मीद का हंगाम...

सारी दीवार सियह हो गई ता-हलक़ा-ए-दाम रास्ते बुझ गए रुख़्सत हुए रहगीर तमाम अपनी तंहाई से गोया हुई फिर रात मिरी हो न हो आज फिर आई है मुलाक़ात मिरी...

शरह-ए-बेदर्दी-ए-हालात न होने पाई अब के भी दिल की मुदारात न होने पाई फिर वही वा'दा जो इक़रार न बनने पाया फिर वही बात जो इसबात न होने पाई...

आज इक हर्फ़ को फिर ढूँढता फिरता है ख़याल मध-भरा हर्फ़ कोई, ज़हर-भरा हर्फ़ कोई दिल-नशीं हर्फ़ कोई क़हर-भरा हर्फ़ कोई हर्फ़-ए-उल्फ़त कोई दिलदार नज़र हो जैसे...