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छोड़ चले, ले तेरी कुटिया, यह लुटिया-डोरी ले अपनी, फिर वह पापड़ नहीं बेलने; फिर वह माल पडे न जपनी।...

क्यों मुझे तुम खींच लाये? एक गो-पद था, भला था, कब किसी के काम का था? क्षुद्ध तरलाई गरीबिन...

संपूरन कै संग अपूरन झूला झूलै री, दिन तो दिन, कलमुँही साँझ भी अब तो फूलै री। गड़े हिंडोले, वे अनबोले मन में वृन्दावन में, निकल पड़ेंगे डोले सखि अब भू में और गगन में,...

बदरिया थम-थनकर झर री ! सागर पर मत भरे अभागन गागर को भर री ! बदरिया थम-थमकर झर री !...

क्या कहा कि यह घर मेरा है? जिसके रवि उगें जेलों में, संध्या होवे वीरानों मे, उसके कानों में क्यों कहने...

ये अनाज की पूलें तेरे काँधें झूलें तेरा चौड़ा छाता रे जन-गण के भ्राता शिशिर, ग्रीष्म, वर्षा से लड़ते...

कैसी है पहिचान तुम्हारी राह भूलने पर मिलते हो! पथरा चलीं पुतलियाँ, मैंने विविध धुनों में कितना गाया...

चल पडी चुपचाप सन-सन-सन हवा, डालियों को यों चिढाने-सी लगी, आंख की कलियां, अरी, खोलो जरा, हिल स्वपतियों को जगाने-सी लगी,...

ले लो दो आने के चार लड्डू राज गिरे के यार यह हैं धरती जैसे गोल ढुलक पड़ेंगे गोल मटोल...

क्या आकाश उतर आया है दूबों के दरबार में नीली भूमि हरि हो आई इस किरणों के ज्वार में।...

भाई, छेड़ो नहीं, मुझे खुलकर रोने दो। यह पत्थर का हृदय आँसुओं से धोने दो।...

चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ, चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ,...

कौन पथ भूले, कि आये ! स्नेह मुझसे दूर रहकर कौनसे वरदान पाये? यह किरन-वेला मिलन-वेला...

किरनों की शाला बन्द हो गई चुप-चपु अपने घर को चल पड़ी सहस्त्रों हँस-हँस उ ण्ड खेलतीं घुल-मिल होड़ा-होड़ी रोके रंगों वाली छबियाँ? किसका बस!...

प्यारे भारत देश गगन-गगन तेरा यश फहरा पवन-पवन तेरा बल गहरा क्षिति-जल-नभ पर डाल हिंडोले...

प्राण अन्तर में लिये, पागल जवानी ! कौन कहता है कि तू विधवा हुई, खो आज पानी?  ...

वर्षा ने आज विदाई ली जाड़े ने कुछ अंगड़ाई ली प्रकृति ने पावस बूँदो से रक्षण की नव भरपाई ली। सूरज की किरणों के पथ से काले काले आवरण हटे डूबे टीले महकन उठ्ठी दिन की रातों के चरण हटे।...

तू न तान की मरोर देख, एक साथ चल, तू न ज्ञान-गर्व-मत्त-- शोर, देख साथ चल।...