मुझे रोने दो
भाई, छेड़ो नहीं, मुझे खुलकर रोने दो। यह पत्थर का हृदय आँसुओं से धोने दो। रहो प्रेम से तुम्हीं मौज से मजुं महल में, मुझे दुखों की इसी झोपड़ी में सोने दो। कुछ भी मेरा हृदय न तुमसे कह पावेगा किन्तु फटेगा, फटे बिना क्या रह पावेगा, सिसक-सिसक सानंद आज होगी श्री-पूजा, बहे कुटिल यह सौख्य, दु:ख क्यों बह पावेगा? वारूँ सौ-सौ श्वास एक प्यारी उसांस पर, हारूँ अपने प्राण, दैव, तेरे विलास पर चलो, सखे, तुम चलो, तुम्हारा कार्य चलाओ, लगे दुखों की झड़ी आज अपने निराश पर! हरि खोया है? नहीं, हृदय का धन खोया है, और, न जाने वहीं दुरात्मा मन खोया है। किन्तु आज तक नहीं, हाय, इस तन को खोया, अरे बचा क्या शेष, पूर्ण जीवन खोया है! पूजा के ये पुष्प गिरे जाते हैं नीचे, वह आँसू का स्रोत आज किसके पद सींचे, दिखलाती, क्षणमात्र न आती, प्यारी किस भांति उसे भूतल पर खीचें।

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