तान की मरोर
तू न तान की मरोर देख, एक साथ चल, तू न ज्ञान-गर्व-मत्त-- शोर, देख साथ चल। सूझ की हिलोर की हिलोरबाज़ियाँ न खोज, तू न ध्येय की धरा-- गुंजा, न तू जगा मनोज। तू न कर घमंड, अग्नि, जल, पवन, अनंग संग भूमि आसमान का चढ़े न अर्थ-हीन रंग। बात वह नहीं मनुष्य देवता बना फिरे, था कि राग-रंगियों-- घिरा, बना-ठना फिरे। बात वह नहीं कि-- बात का निचोड़ वेद हो, बात वह नहीं कि- बात में हज़ार भेद हो। स्वर्ग की तलाश में न भूमि-लोक भूल देख, खींच रक्त-बिंदुओं-- भरी, हज़ार स्वर्ण-रेख। बुद्धि यन्त्र है, चला; न बुद्धि का गुलाम हो। सूझ अश्व है, चढ़े-- चलो, कभी न शाम हो। शीश की लहर उठे-- फसल कि, एक शीश दे। पीढ़ियाँ बरस उठें हज़ार शीश शीश ले। भारतीय नीलिमा जगे कि टूट-टूट बंद स्वप्न सत्य हों, बहार-- गा उठे अमंद छन्द।

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